सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
4 पाठकों को प्रिय 138 पाठक हैं |
नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
सोफ़िया ने क्षीण स्वर में पूछा–मैं कहां हूं? मामा कहां है?
वृद्ध पुरुष ने कहा–तुम कुंवर भरतसिंह के घर में हो। तुम्हारे सामने रानी साहिबा बैठी हुई हैं, तुम्हारा जी अब कैसा है?
सोफ़िया–अच्छी हूं, प्यास लगी है। मामा कहां हैं, पापा कहां है, आप कौन हैं?
रानी–यह डॉक्टर गांगुली हैं, तीन दिन से तुम्हारी दवा कर रहे हैं। तुम्हारे पापा-मामा कौन हैं?
सोफ़िया–पापा का नाम मि. जॉन सेवक है। हमारा बंगला सिगरा में है।
डॉक्टर–अच्छा, तुम मि. जॉन सेवक की बेटी हो? हम उसे जानता है, अभी बुलाता है।
रानी–किसी को अभी भेज दूं?
सोफ़िया–कोई जल्दी नहीं है, आ जाएँगे। मैंने जिस आदमी को पकड़कर खींचा था, उसकी क्या दशा हुई?
रानी–बेटी, वह ईश्वर की कृपा से बहुत अच्छी तरह है। उसे जरा भी आंच नहीं लगी। वह मेरा बेटा विनय है। अभी आता होगा। तुम्हीं ने तो उसके प्राण बचाए। अगर तुम दौड़कर न पहुंच जातीं, तो आज न जाने क्या होता। मैं तुम्हारे ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकती। तुम मेरे कुल की रक्षा करनेवाली देवी हो।
सोफ़िया–जिस घर में आग लगी थी, उसके आदमी सब बच गए?
रानी–बेटी, यह तो केवल अभिनय था, विनय ने यहां एक सेवा-समिति बना रखी है ! जब शहर में कोई मेला होता है, या कहीं से किसी दुर्घटना का समाचार आता है, तो सीमित वहां पहुंचकर सेवा-सहायता करती है। उस दिन समिति की परीक्षा के लिए कुंवर साहब ने वह अभिनय किया था।
डॉक्टर–कुंवर साहब देवता हैं, कितने गरीब लोगों की रक्षा करता है। यह समिति, अभी थोड़े दिन हुए, बंगाल गई थी। यहां सूर्य-ग्रहण का स्नान होनेवाला है। लाखों यात्री दूर-दूर से आएंगे। उसके लिए यह सब तैयारी हो रही हैं।
इतने में एक युवती रमणी आकर खड़ी हो गई। उसके मुख से उज्ज्वल दीपक के समान प्रकाश की रश्मियां छिटक रही थीं। गले में मोतियों के हार के सिवा उसके शरीर पर कोई आभूषण न था ! उषा की शुभ्र छटा मूर्तिमान हो गई थी।
|