सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
प्रभु सेवक को उसे बंद करके रख देने का अवकाश न था। वह प्रातःकाल से दो घड़ी रात तक शहर का चक्कर लगाया करता। केवल दो बार भोजन करने घर आता था। ऐसा कोई स्कूल न था, जहां उसने सोफ़ी को न ढूंढ़ा हो। कोई जान-पहचान का आदमी, कोई मित्र ऐसा न था, जिसके घर जाकर उसने तलाश न की हो। दिन-भर की दौड़-धूप के बाद रात को निराश होकर लौटा आता, और चारपाई पर लेटकर घंटों सोचता और रोता। कहां चली गई? पुलिस के दफ्तर में दिन-भर में दस-दस बार जाता और पूछता, कुछ पता चला? समाचार-पत्रों में भी सूचना दे रखी थी। वहां भी रोज कई बार जाकर दरियाफ्त करता। उसे विश्वास होता जाता था कि सोफ़ी हमसे सदा के लिए विदा हो गई। आज भी, रोज की भांति, एक बजे थका-मांदा, उदास और निराश लौटकर आया, तो जॉन सेवक ने शुभ सूचना दी–सोफ़िया का पता मिल गया।
प्रभु सेवक का चेहरा खिल उठा। बोला–सच ! कहां? क्या उसका कोई पत्र आया है?
जॉन सेवक–कुंवर भरतसिंह के मकान पर है। जाओ, खाना खा लो। तुम्हें भी वहां चलना है।
प्रभु सेवक–मैं तो लौटकर खाना खाऊंगा। भूख गायब हो गई। है तो अच्छी तरह?
मिसेज सेवक–हां, हां, बहुत अच्छी तरह है। खुदा ने यहां से रूठकर जाने की सजा दे दी।
प्रभु सेवक–मामा, खुदा ने आपका दिल न जाने किस पत्थर का बनाया है। क्या घर से आप ही रूठकर चली गई थी? आप ही ने उसे निकाला, और अब भी आपको उस पर जरा-सी दया नहीं आती?
मिसेज सेवक–गुमराहों पर दया करना पाप है।
प्रभु सेवक–अगर सोफ़ी गुमराह है, तो ईसाइयों में १०० में ९९ आदमी गुमराह हैं ! वह धर्म का स्वांग नहीं दिखाना चाहती, यही उसमें दोष है; नहीं तो प्रभु मसीह से जिनती श्रद्धा उसे है, उतनी उन्हें भी न होगी, जो ईसा पर जान देते हैं।
मिसेज सेवक–खैर, मालूम हो गया कि तुम उसकी वकालत खूब कर सकते हो। मुझे इन दलीलों को सुनने की फुरसत नहीं।
यह कहकर मिसेज सेवक वहां से चली गईं। भोजन का समय आया। लोग मेज पर बैठे। प्रभु सेवक आग्रह करने पर भी न गया। तीनों आदमी फिटन पर बैठे, तो ईश्वर सेवक ने चलते-चलते जॉन सेवक से कहा–सोफ़ी को जरूर साथ लाना, और इस अवसर को हाथ से न जाने देना। प्रभु मसीह तुम्हें सुबुद्धि दे, सफल मनोरथ करें।
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