सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
कुंवर साहब सांसारिक पुरुष न थे। उनका अधिकांश समय धर्म-ग्रंथों के पढ़ने में लगता था। वह किसी ऐसे काम में शरीक न होना चाहते थे, जो उनकी धार्मिक एकाग्रता में बाधक हो। धूर्तों ने उन्हें मानव-चरित्र का छिद्रान्वेषी बना दिया था। उन्हें किसी पर विश्वास न होता था। पाठशालाओं और अनाथालयों को चंदे देते हुए वह बहुत डरते रहते थे और बहुधा इस विषय में औचित्य की सीमा से बाहर निकल जाते थे–सुपात्रों को भी उनसे निराश होना पड़ता था। पर संयमशीलता जहां इतनी सशंक रहती है, वहां लाभ का विश्वास होने पर उचित से अधिक निःशंक भी हो जाती है।–मिस्टर जॉन सेवक का भाषण व्यावसायिक ज्ञान से परिपूर्ण था; पर कुंबर साहब पर इससे ज्यादा प्रभाव उनके व्यक्तित्व का पड़ा। उनकी दृष्टि में जॉन सेवक अब केवल धन के उपासक न थे, वरन् हितैषी मित्र थे। ऐसा आदमी उन्हें मुगालता न दे सकता था। बोले–जब आप इतनी किफायत से काम करेंगे, तो आपका उद्योग अवश्य सफल होगा, इसमें कोई संदेह नहीं। आपको शायद अभी मालूम न हो, मैंने यहां एक सेवा-समिति खोल रखी है। कुछ दिनों से यही खब्त सवार है। उसमें इस समय लगभग एक सौ स्वयंसेवक है। मेले-ठेले में जनता की रक्षा और सेवा करना उसका काम है। मैं चाहता हूं कि उसे आर्थिक कठिनाइयों से सदा के लिए मुक्त कर दूं। हमारे देश की संस्थाए बहुधा धनाभाव के कारण अल्पायु होती हैं। मैं इस संस्था को सुद्धढ़ बनाना चाहता हूं और मेरी यह हार्दिक अभिलाषा है कि इससे देश का कल्याण हो। मैं किसी से इस काम में सहायता नहीं लेना चाहता। उसके निर्विध्न संचालन के लिए एक स्थायी कोष की व्यवस्था कर देना चाहता हूं। मैं आपको अपना मित्र और हितचिंतक समझकर पूछता हूं, क्या आपके कारखाने में हिस्से ले लेने से मेरा उद्देश्य पूरा हो सकता है? आपके अनुमान में कितने रुपए लगाने से एक हजार की मासिक आमदनी हो सकती है?
जॉन सेवक की व्यावसायिक लोलुपता ने अभी उनकी सद्भावनाओं को शिथिल नहीं किया था। कुंवर साहब ने उनकी राय पर फैसला छोड़कर उन्हें दुविधा में डाल दिया। अगर उन्हें पहले से मालूम होता कि यह समस्या सामने आवेगी, तो नफा का तखमीना बताने में ज्यादा सावधान हो जाते। गैरों से चालें चलना क्षम्य समझा जाता है; लेकिन ऐसे स्वार्थ के भक्त कम मिलेंगे, जो मित्रों से दगा करें। सरल प्राणियों के सामने कपट भी लज्जित हो जाता है।
जॉन सेवक ऐसा उत्तर देना चाहते थे, जो स्वार्थ और आत्मा, दोनों ही को स्वीकार हो। बोले–कंपनी की जो स्थिति है, वह मैंने आपके सामने खोलकर रख दी हैं। संचालन-विधि भी आपको बतला चुका हूं। मैंने सफलता के सभी साधनों पर निगाह रखी है। इस पर भी संभव है मुझसे भूलें हो गई हों, और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मनुष्य विधाता के हाथों का खिलौना-मात्र है। उसके सारे अनुमान, सारी बुद्धिमत्ता, सारी शुभ-चिंताएं नैसर्गिक शक्तियों के अधीन हैं। तंबाकू की उपज बढ़ाने के लिए किसानों को पेशगी रुपए देने ही पड़ेंगे। एक रात का पाला कंपनी के लिए घातक हो सकता है। जले हुए सिगरेट का एक टुकड़ा कारखाने के खाक में मिला सकता है। हां, मेरी परिमित बुद्धि की दौड़ जहां तक है, मैंने कोई बात बढ़ाकर नहीं कही है। आकस्मिक बाधाओं को देखते हुए आप लाभ के अनुमान में कुछ और कमी कर सकते हैं।
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