सदाबहार >> रंगभूमि (उपन्यास) रंगभूमि (उपन्यास)प्रेमचन्द
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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है
मिसेज सेवक–आप जाकर उसकी खुशामद कीजिएगा, तो आवेगी। मेरे कहने से तो नहीं आई। बच्ची तो नहीं कि गोद में उठा लाती?
जॉन सेवक–पापा, वहां बहुत आराम से है। राजा और रानी, दोनों ही उसके साथ प्रेम करते हैं। सच पूछिए, तो रानी ही ने उसे नहीं छोड़ा।
ईश्वर सेवक–कुंवर साहब से कुछ काम की बातचीत भी हुई?
जॉन सेवक–जी हां, मुबारक हो। पचार हजार की गोटी हाथ लगी।
ईश्वर सेवक–शुक्र है, शुक्र है, ईसू, मुझ पर अपना साया कर। यह कहकर वह फिर आराम-कुर्सी पर बैठ गए।
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चल प्रकृति बालकों के लिए अंधे विनोद की वस्तु हुआ करते हैं। सूरदास को उनकी निर्दय बाल-क्रीड़ाओं से इतना कष्ट होता था कि वह मुंह-अंधेरे घर से निकल पड़ता और चिराग जलने के बाद लौटता। जिस दिन उसे जाने में देर होती, उस दिन विपत्ति में पड़ जाता था। सड़क पर, राहगीरों के सामने, उसे कोई शंका न होती थी; किंतु बस्ती की गलियों में पग-पग पर किसी दुर्घटना की शंका बनी रहती थी। कोई उसकी लाठी छीनकर भागता; कोई कहता–सूरदास, सामने गड्ढा है, बाईं तरफ हो जाओ। सूरदास बाएं घूमता, तो गड्ढे में गिर पड़ता। मगर बजरंगी का लड़का घीसू इतना दुष्ट था कि सूरदास को छेड़ने के लिए घड़ी-भर रात रहते ही उठ पड़ता। उसकी लाठी छीनकर भागने में उसे बड़ा आनंद मिलता था।
एक दिन सूर्योदय के पहले सूरदास घर से चले, तो घीसू एक तंग गली में छिपा हुआ खड़ा था। सूरदास को वहां पहुंचते ही कुछ शंका हुई। वह खड़ा होकर आहट लेने लगा। घीसू अब हंसी न रोक सका। झपटकर सूरे का डंडा पकड़ लिया। सूरदास डंडे को मजबूत पकड़े हुए था। घीसू ने पूरी शक्ति से खींचा। हाथ फिसल गया, अपने ही जोर में गिर पड़ा, सिर में चोट लगी, खून निकल आया। उसने खून देखा, तो चीखता-चिल्लाता घर पहुंचा। बजरंगी ने पूछा, क्यों रोता है रे? क्या हुआ? घीसू ने उसे कुछ जवाब न दिया। लड़के खूब जानते हैं कि किस न्यायशील में उनकी जीत होगी। आकर मां से बोला–सूरदास ने मुझे ढकेल दिया। मां ने सिर की चोट देखी, तो आंखों में खून उतर आया। लड़के का हाथ पकड़े हुए आकर बजरंगी के सामने खड़ी हो गई और बोली–अब इस अंधे की शामत आ गई। लड़के को ऐसा ढकेला कि लहूलुहान हो गया। उसकी इतनी हिम्मत ! रुपए का घमंड उतार दूंगी।
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