सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
रंग में भंग
शादी हो जाने के बाद लड़की अपने महल में चली गई। बूढ़ी औरतें इधर-उधर खिसक गयीं। बहू की सहेलियां राव जी को उसके महल की तरफ ले चलीं। रास्ते में एक जगह गाना हो रहा था। कितनी ही चन्द्रवनी सुन्दरियां सुहाग के गीत अलाप रही थीं। राव जी चलते-चलते वहां फिसल पड़े। औरतों के गाने और रूप-रंग ने उन पर जादू कर दिया। वहीं डट गए। खवासें दौड़ीं। एक ने चांदनी, दूसरी ने सोजनी और तीसरी ने तकिए लगा दिए। पांच-सात सखियों ने मिलकर छोटा-सा शामियाना खड़ा कर दिया। राव जी लट्टू हो गए, फिर क्या था वहीं बैठ गए। दो खवासें दाएं-बाएं मोरछल लेकर खड़ीं हो गयीं, दो चंवर हिलाने और पंखा हिलाने लगीं। गर्मियों की सुहानी रात। चांदनी छिटकी हुई थी। ठण्डी हवा चल रही थी। भीनी-भीनी खुशबू चारों तरफ फैली हुई थी और राव जी उस परिस्तान में इन्द्र बने परियों से चुहल और छेड़-छाड़ कर रहे थे। गाइनें चुप थीं और सामने कुछ फासले पर चन्द नाचने वालियां बनी-ठनी इशारे का इंतजार कर रही थीं।
कलोल करने वालियों में से एक लड़की ने आगे बढ़कर राव जी को सलाम किया और सोजनी से कुछ हटकर बैठी और गानेवालियों को इशारा किया कि हां कुछ छेड़ो, खड़ी मुंह क्या ताकती हो।
बस तबले पर थाप पड़ी और गानेवालियां ऊंचे और मीठे सुरों में गाने लगीं–
पीवनवालो लाखों रो
इस लड़की ने जो चन्द्रज्योति के नाम से मशहूर थी, पन्ने के हरे प्याले में लाल शराब भरकर हंसते हुए राव के सामने पेश की। उन्होंने बड़े शौक से लेकर शराब पी और प्याला अशर्फियों से भरकर लौटा दिया। चन्द्रज्योति ने उठकर सलाम किए और अपने गले का चन्द्रहार तोड़कर उसके मोती राव जी पर से निछावर करके गानेवालियों की तरफ फेंकने लगी। गाइनें सोरठ के सुर में गाने लगीं।
गरुड़ खगां लंका गढ़ां राजकुलां राठौर
(देश में वृज, वनों में चंदन, पहाड़ों में मीरो, चिड़ियों में गरुड़ और किलों में लंका सबका सरताज है। वैसे ही सब राजघरानों में राठौर का घराना सबसे ऊंचा है।)
चन्द्रज्योति ने फिर प्याला भर कर राव जी को दिया और गाइनें गाने लगीं—
बैरी तुम्हारा जल मरे सुख पावेगा सैन।
(शराब पियो और लड़ने को चढ़ो, आंखें लाल रक्खो जिससे तुम्हारे दुश्मन जल मरें और दोस्त खुश हों।)
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