सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
दारू पियो साहब सौ रूपां रा फेर
(शराब ही दिल्ली आगरा है और शराब ही बीकानेर। ऐ साहब, शराब पीजिए, इसका एक-एक दौर सौ-सौ रुपये का है)
नारी तो नबली भली घोड़ा भलो कुमैत
भर ला ऐ सुघड़ कालाली।
(पदों में दोहा, कपड़ों में सफेद कपड़ा, औरतों में नवेली औरत और घोड़ों में कुमैत घोड़ा अच्छा होता है। ऐ छोकरे शराब ला।)
इन गाने-बजाने और तपस्विनियों का व्रत भंग करने वाली स्त्रियों के लुभाने-रिझाने ने राव जी का दिल छीन लिया। उस पर गानेवालियों का समवेत स्वर में तान लगाना और भी सितम ढा गया। राव जी ऐसे बेसुध और आनन्द की सुरा में ऐसे मस्त हुए कि अपनी नई-नवेली दुल्हन को भूल गए, जो उनकी प्रतीक्षा में अपनी बाहें खोले खड़ी थी।
रावजी की राह देखते-देखते उमादे की नशीली आंखें झपकने लगीं। कितनी ही बांदियां उनको बुलाने के लिए गयीं पर राव जी उन परियों के जमघट से न उठ सके यहां तक कि रात बहुत कम बाकी रह गई।
रानी ने जब देखा कि वह और किसी के बुलाने से नहीं आते हैं तो अपनी चंचल सहेली भारीली से कहा कि अब राव जी को लाना तेरा ही काम है। उसने कहा कि राव जी इस वक्त आपे में नहीं हैं, मुझे न भेजिए। मगर उमादे ने न माना और उसी को भेजा।
इधर शादी की महफिल भी सजी हुई थी। गाइनें तैयार बैठी थीं। शराब की बोतलें चुनी हुई थीं। गजक तश्तरियों में धरी हुई थी। सिर्फ राजा के आने की देर थी। रानी को यकीन हो गया कि भारीली गई है तो राजा को जरूर ही खींच लाएगी। गानेवालियों को इशारा किया कि कुछ छेड़ो और वह मीठे सुरों में गाने लगीं—
दारू रा भारो महलां पधारो, महाराज हो
कदरी जोहूं सेजां बाट हो
(महाराज, महलों में तशरीफ ले चलिए। ऐ शराब का मजा उड़ाने वाले, महलों में चल। मैं बहुत देर से सेज पर इंतजार में बेचैन हो रही हूं।)
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