नाटक-एकाँकी >> संग्राम (नाटक) संग्राम (नाटक)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट
तीसरा दृश्य
[स्थान– मुधबन गांव, समय-बैसाख प्रातःकाल]
फत्तू– पांचों आदमियों पर डिगरी हो गयी। अब ठाकुर साहब जब चाहे उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें।
एक किसान– ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।
[सबलसिंह के चपरासी का प्रवेश]
चपरासी– सरकार ने हुक्म दिया कि असामी लोग जरा भी चिंता न करे। हम उनकी हर तरह मदद करने को तैयार है। जिन लोगों ने अभी लगान नहीं दिया है उनकी माफी हो गयी। अब सरकार किसी से लगान न लेगें। अगले साल के लगान के साथ यह बकाया न वसूल की जायेगी। यह छूट सरकार की ओर से नहीं हुई है। ठाकुर साहब ने तुम लोगों की परवरिश के खयाल से यह रिआयत न होगी। छोटे ठाकुर साहब ने देनदारों पर डिगरी करायी है। मगर उनका हुक्म भी यही है कि डिगरी जारी न की जायेगी। हां जो लोग
भागेंगे उनकी जायदाद नीलाम करा ली जायेगी। तुम लोग दोनों ठाकुरों को आशीर्वाद दो।
एक किसान– भगवान दोनों भाइयों की जुगूल जोड़ी सलामत रखे।
दूसरा– नारायन उनका कल्यान करें। हमकों जिला लिया, नहीं तो इस विपत्ति में कुछ न सूझता था।
तीसरा– धन्य है उनकी उदारता को। राजा हो तो ऐसा दीनपालक हो। परमात्मा उनकी बढ़ती करे।
चौथा– ऐसा दानी देश में और कौन है। नाम के लिए सरकार को लाखों रुपये चंदा दे आते हैं, हमको कौन पूछता है। बल्कि यह चंदा भी हर्मी से डंडे मार-मार कर वसूल कर लिया जाता है।
पहला– चलो कल सब जने डेवढ़ी की जय मना आयें।
दूसरा– हां कल भोरे चलो।
तीसरा– चलो देवी के चौरे पर चलकर जय-जयकार, मनाये।
चौथा– कहां है हलधर कहो ढोल-मजीरा लेता चले।
[फत्तू हलधर के घर जाकर खाली हाथ लौट आता है।]
पहला किसान– क्या हुआ? खाली हाथ क्यों आये?
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