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संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620
आईएसबीएन :978-1-61301-124

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट


सबल– उसकी जरा भी चिंता मत करो। मैंने उसे हिरासत में रखवा दिया है। वहां छह महीने तक रखूंगा। अभी तो एक महीने से कुछ ही ऊपर हुआ है। छह महीने बाद देखा जाएगा। रुपये कहां हैं कि दे कर छूटेगा!

राजेश्वरी– क्या जाने उसके गाय-बैल कहां गये? भूखों मर गये होंगे।

सबल– नहीं, मैंने पता लगाया था। वह बुड्ढा मुसलमान फत्तू उसके सब जानवरों को अपने घर ले गया है और उनकी अच्छी तरह सेवा करता है।

राजेश्वरी– यह सुन कर चिंता मिट गई। मैं डरती थी कहीं सब जानवर मर गये हों तो हमें हत्या लगे।

सबल– (घड़ी देख कर) यहां आता हूं तो समय के पर-से लग जाते हैं। मेरा बस चलता तो एक-एक मिनिट के एक-एक घंटे बना देता।

राजेश्वरी– और मेरा बस चलता तो एक-एक घंटे के एक-एक मिनिट बना देती। जब प्यास भर पानी न मिले तो पानी में मुंह क्यों लगाये। जब कपड़े पर रंग के छीटे ही डालने हैं तो उसका उजला रहना ही अच्छा। अब मन को समेटना सीखूंगी।

सबल– प्रिये...

राजेश्वरी– (बात काट कर) इस पवित्र शब्द को अपवित्र न कीजिए।

सजल– (सजल नयन हो कर) मेरी इतनी याचना तुम्हें स्वीकार करनी पड़ेगी। प्रिये, मुझे अनुभव हो रहा है कि यहां रहकर हम आनंदमय प्रेम का स्वर्ग-सुख न भोग सकेंगे। क्यों न हम किसी सुरम्य स्थान पर चलें जहां विघ्न और बाधाओं, चिंताओं और शंकाओं से मुक्त होकर जीवन व्यतीत हो। मैं कह सकता हूं कि मुझे जलवायु परिवर्तन के लिए किसी स्वास्थ्यकर स्थान की जरूरत है, जैसे गढ़वाल, आबू पर्वत या रांची।

राजेश्वरी– लेकिन ज्ञानी देवी को क्या कीजिएगा? क्या वह साथ न चलेंगी?

सबल– बस यही एक रूकावट है। ऐसा कौन सा यत्न करूं कि वह मेरे साथ चलने पर आग्रह करे। इनके साथ ही कोई संदेह भी न हो।

राजेश्वरी– ज्ञानी सती हैं, वह किसी तरह यहां न रहेंगी। यूं आप दस पांच दिन, या एक दो महीने के लिए कहीं जायें तो वह साथ न जायेगी, लेकिन जब उन्हें मालूम होगा कि आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तब वह किसी तरह न रूकेगी। और यह बात भी है कि ऐसी सत्ती स्त्री को मैं दुःखी नहीं करना चाहती। मैं तो केवल आपका प्रेम चाहती हूं। उतना ही जितना ज्ञानी से बचे। मैं उनका अधिकार नहीं छीनना चाहती। मैं उनके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूं। मैं उनके घर मे चोर की भांति घुसी हूं। उनसे मेरी क्या बराबरी। आप उन्हें दुःखी किये बिना मुझ पर जितनी कृपा कर सकते हैं उतनी कीजिए।

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