नाटक-एकाँकी >> संग्राम (नाटक) संग्राम (नाटक)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट
हलधर– सरासर झूठ है। मेरा सर्वनाश आपके हाथों हुआ है। आपने मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दी। मेरे घर में आग लगा दी। और अब झूठ बोल कर अपने प्राण बचाना चाहते है। मुझे सब खबरें मिल चुकी हैं। बाबा चेतनदास ने सारा कच्चा चिट्ठा मुझसे कह सुनाया है। अब बिना आपका खून पिये इस तलवार की प्यास न बुझेगी।
सबल– हलधर, मैं क्षत्रिय हूं और प्राणों को नहीं डरता। तुम मेरे साथ कमरे तक आओ। मैं ईश्वर को साक्षी दे कर कहता हूं कि मैं कोई छल-कपट न करूंगा। वहां मैं तुमसे सब वृत्तांत सच-सच कह दूंगा। तब तुम्हारे मन में जी आये वह करना।
हलधर– चौकन्नी दृष्टि से ताकता हुआ सबल के साथ उसके दीवानखाने में जाता है।
सबल– तख्त पर बैठ जाओ और सुनो। यह सारी आग कंचनसिंह की लगाई हुई है। उसने कुटनी द्वारा राजेश्वरी को घर से निकलवा लिया है। उसके गोइदों ने राजेश्वरी का उससे बखान किया होगा। वह उस पर मोहित हो गया और तुम्हें जेल पहुंचा कर अपनी इच्छा पूरी की। जब से मुझे यह समाचार मिला है मैं उस का शत्रु हो गया हूं। तुम जानते हो, मुझे अत्याचार से कितनी घृणा है। अत्याचारी पुरुष चाहे वह मेरा पुत्र ही क्यों न हो, मेरी दृष्टि में हिंसक का वध करने जा रहा था। इतने में तुम दिखाई पड़े। मुझे अब मालूम हुआ कि जिसे मैं बड़ा धर्मात्मा, ईश्वरभक्त, सदाचारी, त्यागी समझता था वह वास्तव में एक परले दरजे का व्यभिचारी, विषयी मनुष्य है। इसीलिए उसने अब तक विवाह नहीं किया। उसने कर्मचारियों को घूस देकर तुम्हें चुपके-चुपके गिरफ्तार करा लिया और अब राजेश्वरी के साथ विहार करता है। अभी आधी रात को वहां से लौट कर आया है। मैंने तुमसे सारा वृत्तांत कह सुनाया, अब तुम्हारी जो इच्छा हो करो।
[हलधर लपक कर कंचनसिंह के कमरे की ओर चलता है।]
सबल– ठहरो-ठहरो यों नहीं। सम्भव है तुम्हारी आहट पाकर जाग उठे। नौकर-सिपाही उसका चिल्लाना सुनकर जाग पड़े। प्रातःकाल वह गंगा नहाने जाता है। उस वक्त अंधेरा रहता है। वहीं तुम उसे गंगा की भेंट कर सकते हो। घात लगाये रहो। अवसर आते ही एक हाथ में काम तमाम कर दो और लाश को वहीं बहा दो। तुम्हारा मनोरथ पूरा होने का इससे सुगम उपाय नहीं है।
हलधर– (कुछ सोचकर) मुझे धोखा तो नहीं देना चाहते? इस बहाने से मुझे टाल दो और फिर सचेत हो जाओ और मुझे पकड़वा देने का इन्तजाम करो।
सबल– मैंने ईश्वर की कसम खायी है, अगर अब भी तुम्हें विश्वास न आये तो जो चाहे करो।
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