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सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624
आईएसबीएन :978-1-61301-181

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यही सोचते हुए बँगले पर पहुँचे, तो क्या देखते हैं कि कई कान्स्टेबल बँगले के बरामदे में लेटे हुए हैं। मुख्तार साहब शर्माजी को देखते ही आगे बढ़कर बोल– हुजूर! बड़े दारोगाजी छोटे दारोगाजी के साथ आये हैं। मैंने उनके लिए पलँग कमरे में ही बिछवा दिए हैं। ये लोग जब इधर आ जाते हैं तो यहीं ठहरा करते हैं। देहात में इनके योग्य स्थान और कहाँ है? अब मैं इनसे कैसे कहता कि कमरा खाली नहीं है। हुजूर का पलँग ऊपर बिछवा दिया है।

शर्माजी अपने अन्य देश-हितचिन्तक भाइयों की भाँति पुलिस के घोर विरोधी थे। पुलिस वालों के अत्याचारों के कारण उन्हें बड़ी घृणा की दृष्टि से देखते थे। उनका सिद्धान्त था कि यदि पुलिस का आदमी प्यास से मर भी जाए, तो उसे पानी न देना चाहिए। अपने कारिन्दे से यह समाचार सुनते ही उनके शरीर में आग–सी लग गई। कारिन्दे की ओर लाल आँखों से देखा और लपककर कमरे की ओर चले। बेईमानों का बोरिया बँधना उठाकर फेंक दूँ। वाह! मेरा घर न हुआ, कोई होटल हुआ। आकर डट गए। तेवर बदले हुए बरामदे में जा पहुँचे कि इतने में छोटे दारोगा बाबू कोकिला सिहं ने कमरे से निकलकर पालागन किया और हाथ बढ़ाकर बोले– अच्छी साइत से चला था कि आपके दर्शन हो गए। आप मुझे भूल तो न गए होंगे?

यह महाशय दो साल पहले ‘‘सोशल सर्विस लीग’’ के उत्साही सदस्य थे। इण्टरमीडिएट फेल हो जाने के बाद पुलिस में दाखिल हो गए थे। शर्माजी ने उन्हें देखते ही पहचान लिया। क्रोध शान्त हो गया। मुस्कराने की चेष्टा करके बोले– भूलना बड़े आदमियों का काम है। मैंने तो आपको दूर ही से पहचान लिया था। कहिए, इसी थाने में हैं क्या? कोकिला सिंह बोले– आइए, आपको दारोगाजी से इन्ट्रोड्यूस (परिचित) करा दूँ।

भीतर आराम कुरसी पर लेटे दारोगा जुल्फिकार अली खाँ हुक्का पी रहे थो। बड़े डील-डौल के मनुष्य थे। चेहरे से रोब टपकता था। शर्माजी को देखते ही उठकर हाथ मिलाया और बोले– जनाब से नियाज हासिल करने का शौक मुद्दत से था। आज खुशनसीबी से मौका भी मिल गया। इस मुदाखिलत बेजा को मुआफ फरमाइएगा।

शर्माजी को आज मालूम हुआ कि पुलिसवालों को अशिष्ट कहना अन्याय है। हाथ मिलाकर बोले– यह आप क्या फरमाते हैं! यह आपका का घर है।

पर इसके साथ ही पुलिस पर आक्षेप करने का ऐसा अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे। कोकिला सिंह से बोले– आपने तो पिछले साल कालेज छोड़ा है, लेकिन नौकरी भी की तो पुलिस की।

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