लोगों की राय

कहानी संग्रह >> सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

सप्त सरोज (कहानी संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :140
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8624
आईएसबीएन :978-1-61301-181

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

430 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध कहानियाँ


बड़े दारोगाजी यह ललकार सुनकर सँभल बैठे और बोले– क्यों जनाब! क्या पुलिस ही सारे मुहकमों से गया-गुजरा है? ऐसा कौन-सा सीगा है, जहाँ रिश्वत का बाजार गर्म नहीं। अगर आप ऐसे एक भी सीगे का नाम बता दीजिए तो मैं ताउम्र आपकी गुलामी करूँ! मुलाजमत करके रिश्वत न लेना मुहाल है। तालीम के सीगे को बेलौस कहा जाता है, मगर मुझको इसका खूब तजरबा हो चुका है। अब मैं किसी के रास्तबाजी के दावे को तसलीम नहीं, कह सकता। और दूसरे सीगों की निस्बत तो मैं नहीं कर सकता, मगर पुलिस में जो भी रिश्वत नहीं लेता, उसे मैं अहमक समझता हूँ। मैंने दो एक दयानतदार सब –इन्स्पेक्टर देखे हैं। पर उन्हें हमेशा तबाह देखा। कभी मातूब, कभी मुअत्तल, कभी बरखास्त। चौकीदार और कांस्टेबल बेचारे थोड़ी औकात के आदमी हैं, उनका गुजारा क्योंकर हो? वही हमारे हाथ-पाँव हैं, उन्हीं पर हमारी नेकनामी का दारमदार है। जब वह खुद भूखों मरेंगे, तो हमें क्या नेकनामी मिलेगी? जो लोग हाथ बढ़ा कर लेते हैं, खुद खाते हैं, दूसरे को खिलाते हैं, अफसरों को खुश रखते हैं, उनका शुमार कारगुजार, नेकनाम आदमियों में होता है। मैंने तो यही अपना उसूल बना रखा है और खुदा का शुक्र है कि अफसर और मातहत सभी खुश हैं।

शर्माजी ने कहा– इसी वजह से तो मैंने ठाकुर साहब से कहा था कि आप क्यों इस सीगे में आये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book