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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


भानुकुँवरि ने लाला छक्कनलाल से पूछा– हमारा वकील कौन है?

छक्कनलाल ने इधर– उधर झाँककर कहा– वकील तो सेठजी हैं; पर सत्य– नारायण ने उन्हें पहले से ही गांठ में रखा होगा। इस मुकदमे के लिए बड़े होशियार वकील की जरूरत है। मेहरा बाबू की आजकल खूब चल रही। हाकिमों की कलम पकड़ लेते हैं। बोलते हैं तो जैसे मोटरकार छूट गई। सरकार, और क्या कहें, कई आदमियों को फाँसी से उतार लिया है। उनके सामने कोई वकील जबान तो खोल ही नहीं सकता। सरकार कहें तो वही कर लिये जायँ।

छक्कन लाल की अत्युक्ति ने संदेह पैदा कर दिया। भानुकुँवरि ने कहा– नहीं पहले सेठ जी से पूछ लिया जाय। इसके बाद देखा जायगा। आप जाइए, उन्हें बुला लाइये।

छक्कन लाल अपनी तकदीर को ठोंकते हुए सेठ जी के पास गये। सेठजी पंडित भृगुदत्त के जीवन– काल ही से उनके कानून– सम्बन्धी सब काम किया करते थे! मुकदमें का हाल सुना, तो सन्नाटे में आ गए। सत्यनारायण को वह बड़ा नेकनीयत आदमी समझते थे। उनके पतन पर बड़ा खेद किया। उसी वक्त आये। भानुकुँवरि ने रो– रोकर उनसे अपनी विपत्ति की कथा कही और अपने दोनों लड़कों को उनके सामने खड़ा कर बोली– आप इन अनाथों की रक्षा कीजिए। इन्हें मैं आपको सौंपती हूँ।

सेठजी ने समझौते की बात छेड़ी– आपस में लड़ाई अच्छी नहीं भानुकुँवरि– अन्यायी के साथ लड़ना अच्छा है।

सेठजी– पर हमारा पक्ष तो निर्बल है।

भानुकुँवरि फिर परदे से निकल आयी और फिर विस्मित होकर बोली– क्या हमारा पक्ष निर्बल है? दुनिया जानती है कि गाँव हमारा है। उसे हमसे कौन ले सकता है? नहीं, मैं सुलह कभी न करूँगी। आप कागजों को देखें। मेरे बच्चों की खातिर यह कष्ट उठाएं। आपका परिश्रम निष्फल न जायेगा। सत्यनारायण की नीयत पहले खराब न थी। देखिए, जिस मिती में गाँव लिया गया है। उस मिती में ३॰ हजार का क्या खर्च दिखाया गया है! अगर उसने अपने नाम उधार लिया हो, तो देखिए, वार्षिक चुकाया गया है या नहीं। ऐसे नर– पिशाच से मैं कभी सुलह न करूँगी।

सेठजी ने समझ लिया कि इस समय समझाने– बुझाने से कुछ काम न चलेगा। कागजात देखे, अभियोग चलाने की तैयारियाँ होने लगीं।

मुंशी सत्यनारायण लाल खिसियाए हुए मकान पहुँचे। लड़के ने मिठाई माँगी। उसे पीटा। स्त्री पर इसलिए बरस पड़े कि उसने क्यों लड़के को उनके पास जाने दिया। अपनी वृद्घा माता को डाँटकर कहा– तुमसे इतना भी नहीं हो सकता कि जरा लड़के को बहलाओ। एक तो मैं दिन– भर का थका– मांदा घर आऊँ और फिर लड़के को खिलाऊँ? मुझे दुनिया में न और कोई काम है, न धंधा!

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