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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ

सुजान भगत

सीधे– सादे किसान, धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते है। दिव्य समाज की भाँति वे पहले अपने भोगविलास की ओर नहीं दौड़ते। सुजान की खेती में कई साल से कंचन बरस रहा था। मेहनत तो गाँव के सभी किसान करते थे, पर सुजान के चंद्रमा बली थे, ऊसर में भी दाना छींट आता, तो कुछ– न– कुछ पैदा हो जाता था। तीन वर्ष लगातार ऊख लगती गई। इधर गुड़ का भाव तेज था, कोई दो– ढाई हजार हाथ में आ गए। बस, चित्त की वृत्ति धर्म की ओर झुक पड़ी। साधु– संतों का आदर– सत्कार होने लगा, द्वार पर धूनी जलने लगी। कानूनगो इलाके में आते, तो सुजान महतो के चौपाल में ठहरते। हल्के के हेड कांस्टेबिल, थानेदार, शिक्षाविभाग के अफसर, एक– एक उस चौपाल में पड़ा ही रहता। महतो मारे खुशी के फूला न समाते। धन्य! भाग्य! उनके द्वार पर अब इतने बड़े– बड़े हाकिम आकर ठहरते है। जिन हाकिमों के सामने उसका मुँह न खुलता था, उन्हीं की अब ‘महतो– महतो’ कहते जबान सूखती थी। कभी– कभी भजन– भाव हो जाता। एक महात्मा ने डौल अच्छा देखा, तो गाँव में आसन जमा दिया। गाँजे और चरस की बहार उड़ने लगी। एक ढोलक आयी, मँजीरे मँगवाये गये सत्संग होने लगा। यह सब सुजान के दम का जलूस था। घर में सेरों दूध होता; मगर सुजान के कंठ-तले एक बूँद जाने की भी कसम थी। कभी हाकिम लोग चखते कभी महात्मा लोग।

किसान को दूध से क्या मतलब? उसे तो रोटी और साग चाहिए। सुजान की नम्रता का अब वारापार न था। सबके सामने सिर झुकाए रहता, कहीं लोग य़ह न कहने लगें। कि धन पाकर इसे घमंड हो गया है। गाँव में कुल तीन ही कुँए थे, बहुत– से खेतों में पानी न पहुँचता था, मारी जाती थी, सुजान ने एक पक्का कुआँ बनवा दिया। कुएँ का विवाह हुआ, यज्ञ हुआ, ब्रह्मभोज हुआ। जिस दिन कुएँ पर पहली बार पुर चला, सुजान को मानो चारों पदार्थ मिल गए। जो काम गाँव में किसी ने न किया था, वह बाप– दादा के पुराण– प्रताप से सुजान ने कर दिखाया।

एक दिन गाँव में गया के यात्री आकर ठहरे। सुजान ही के द्वार पर उनका भोजन बना। सुजान के मन में भी गया करने की बहुत दिनों से इच्छा थी। यह अच्छा अवसर देखकर वह भी चलने के लिए तैयार हो गया।

उसकी स्त्री बुलाकी ने कहा– अभी रहने दो, अगले साल चलेंगे। सुजान ने गम्भीर भाव से कहा– अगले साल क्या होगा, कौन जानता है? धर्म के काम में मीन– मेख निकालना अच्छा नहीं। जिंदगानी का क्या भरोसा?

बुलाकी– हाथ खाली हो जाएगा।

सुजान– भगवान की इच्छा होगी, तो फिर रुपये हो जाएँगे, उनके यहाँ किस बात की कमी है।

बुलाकी इसका क्या जवाब देती? सत्कार्य में बाधा डालकर अपनी मुक्ति क्यों बिगाड़ती! प्रातःकाल स्त्री और पुरुष गया करने चले। वहाँ से लौटे, तो यज्ञ और ब्रह्मभोज की ठहरी। सारी बिरादरी निमंत्रित हुई, ग्यारह गाँवों में सुपारी बँटी। इस, धूम– धाम से कार्य हुआ कि चारों ओर वाह– वाह मच गई। सब यही कहते कि भगवान धन दे, तो दिल भी ऐसा ही दे। घमंड तो छू नहीं गया। अपने हाथ से पत्तल उठाता फिरता था, कुल का नाम जगा दिया। बेटा हो तो ऐसा। बाप मरा तो घर में भूनी भाँग नहीं थी। अब लक्ष्मी घुटने तोड़कर आ बैठी है!

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