सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह) सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
5 पाठकों को प्रिय 100 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ
इसकी रखना लाज।
पहाड़ियाँ इन वीर– स्वरों से गूँज रही थीं, घोड़ों की टापें ताल दे रही थीं।
यहाँ तक की रात बीत गई, सूर्य ने अपनी लाल आँखें खोल दीं, और वीरों पर अपनी स्वर्गच्छटा की वर्षा करने लगा।
वही रक्तमय प्रकाश में शत्रुओं की सेना एक पहाड़ी पर पड़ाव डाले हुए नजर आई!
रत्नसिंह सिर झुकाए, वियोग– व्यथित हृदय को दबाए, मंद गति से पीछे– पीछे चला जाता था। कदम आगे बता था, पर मन पीछे हटता था। आज जीवन में पहली बार दुश्चिताओं ने उसे आशंकित कर रखा था। कौन जानता है, लड़ाई का अंत क्या होगा! जिस स्वर्ग सुख को छोड़कर आया था, उसकी स्मृतियाँ रह – रहकर उसके हृदय को मसोस रही थीं। चिन्ता की सजल आँखें याद आती थीं, और जी चाहता था, घोड़े की रास पीछे मोड़ दे। प्रतिक्षण रणोत्साह क्षीण होता जाता था। सहसा एक सरदार ने समीप आकर कहा – भैया, वह देखो, ऊँची पहाड़ी पर शत्रु डेरा डाले पड़ा है। तुम्हारी अब क्या राय है? हमारी तो यह इच्छा है कि तुरन्त उन पर धावा कर दे। गाफिल पड़े हुए हैं, भाग खड़े होंगे। देर करने से वे भी सँभल जायँगे, और तब मामला नाजुक हो जाएगा एक हजार से कम न होंगे।
रत्नसिंह ने चिंतित नेत्रों से शत्रु – दल की ओर देखकर कहा – हाँ मालूम तो होता है।
सिपाही – तो धावा कर दिया जाए न?
रत्न– जैसी तुम्हारी इच्छा। संख्या अधिक है, यह सोच लो।
सिपाही – इसकी परवा नहीं। हम इससे बड़ी सेनाओं को परास्त कर चुके हैं।
रत्न – यह सच है, पर आग में कूदना ठीक नहीं।
सिपाही – भैया, तुम कहते क्या हो? सिपाही का तो जीवन ही आग में कूदने के लिए है। तुम्हारे हुक्म की देर है, फिर हमारा जीवट देखना।
रत्न – अभी हम लोग बहुत थके हुए हैं। जरा विश्राम कर लेना अच्छा है।
सिपाही – नहीं भैया, उन सभों को हमारी आहट मिल गई, तो गजब हो जाएगा।
|