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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626
आईएसबीएन :978-1-61301-184

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


देवप्रकाश– फीस क्यों बाकी है? तुम तो महीने– महीने ले लिया करते हो न?

सत्यप्रकाश– आये दिन चंदा लगा करते हैं। फीस फीस के रुपये चंदे में दे दिए। और जुर्माना क्यों हुआ?

सत्यप्रकाश– फीस न देने के कारण।

देवप्रकाश– तुमने चंदा क्यों दिया?

सत्यप्रकाश– ज्ञानू ने चंदा दिया तो मैंने भी दिया।

देवप्रकाश– तुम ज्ञानू से जलते हो?

सत्यप्रकाश– मैं ज्ञानू से क्यों जलने लगा? यहाँ हम और वह दो हैं, बाहर हम और वह एक समझे जाते हैं। मैं यह नहीं कहना चाहता कि मेरे पास कुछ नहीं है।

देवप्रकाश– क्यों, यह कहते शर्म आती है?

सत्यप्रकाश– जी हाँ आपकी बदनामी होगी।

देवप्रकाश– अच्छा, तो आप मेरी मान रक्षा करते हैं! यह क्यों नहीं कहते कि पढ़ना अब मन्जूर नहीं। मेरे पास इतना रुपया नहीं कि तुम्हें एक– एक क्लास में तीन– तीन साल पढ़ाऊँ, ऊपर से तुम्हारे खर्च के लिए भी प्रतिमाह कुछ दूँ। ज्ञानू तुमसे कितना छोटा है, लेकिन तुमसे एक ही दर्जा नीचे है। तुम इस साल जरूर ही फेल होओगे, वह जरूर ही पास होगा। अगले साल तुम्हारे साथ ही जावेगा।

तब तो तुम्हारे मुँह में कालिख लगेगी न?

सत्यप्रकाश– विद्या मेरे भाग्य ही में नहीं है।

देवप्रकाश– तुम्हारे भाग्य में क्या है?

सत्यप्रकाश– भीख माँगना।

देवप्रकाश– तो फिर भीख ही माँगो। मेरे घर से निकल जाओ।

देवप्रिया भी आ गई। बोली– शरमाता तो नहीं, और बातों का जवाब देता है।

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