उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
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इस प्रस्ताव के विरोध में हिंदू मेंबरों को जब मुसलमानों के जलसे का हाल मालूम हुआ तो उनके कान खड़े हुए। उन्हें मुसलमानों से जो आशा थी, वह भंग हो गई। कुल दस हिंदू थे। सेठ बलभद्रदास चेयरमैन थे। डॉक्टर श्यामाचरण वाइस-चेयरमैन। लाला चिम्मनलाल और दीनानाथ तिवारी व्यापारियों के नेता थे। पद्मसिंह और रुस्तमभाई वकील थे। रेशमदत्त कॉलेज के अध्यापक, लाला भगतराम ठेकेदार, प्रभाकर राव हिन्दी पत्र ‘जगत’ के संपादक और कुंवर अनिरुद्ध बहादुरसिंह जिले के सबसे बड़े जमींदार थे। चौक की दुकानों में अधिकांश बलभद्रदास और चिम्मनलाल की थीं। दालमंडी में दीनानाथ के कितने ही मकान थे। ये तीनों महाशय इस प्रस्ताव के विपक्षी थे। लाला भगतराम का काम चिम्मनलाल की आर्थिक सहायता से चलता था। इसलिए उनकी सम्मति भी उन्हीं की ओर थी। प्रभाकर राव, रेशमदत्त, रुस्तभाई और पद्मसिंह इस प्रस्ताव के पक्ष में थे। डॉक्टर श्यामाचरण और कुंवर साहब के विषय में अभी तक कुछ निश्चय नहीं हो सका था। दोनों पक्ष उनसे सहायता की आशा रखते थे। उन्हीं पर दोनों पक्षों की हार-जीत निर्भर थी। पद्मसिंह अभी बारात से नहीं लौटे थे। सेठ बलभद्रदास ने इस अवसर को अपने पक्ष के समर्थन के लिए उपयुक्त समझा और सब हिंदू मेंबरों को अपनी सुसज्जित बारहदरी में निमंत्रित किया। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि डॉक्टर साहब और कुंवर महोदय की सहानुभूति अपने पक्ष में कर लें। प्रभाकर राव मुसलमानों के कट्टर विरोधी थे। वे लोग इस प्रस्ताव को हिंदू-मुस्लिम विवाद का रंग देकर प्रभाकर राव को अपनी तरफ खींचना चाहते थे।
दीनानाथ तिवारी बोले– हमारे मुसलमान भाइयों ने तो इस विषय में बड़ी उदारता दिखाई, पर इसमें एक गूढ़ रहस्य है। उन्होंने ‘एक पंथ दो काज’ वाली चाल चली है। एक ओर तो समाज-सुधार की नेकनामी हाथ आती है, दूसरी ओर हिंदुओं को हानि पहुंचाने का एक बहाना मिलता है। ऐसे अवसर से वे कब चूकने वाले थे?
चिम्मनलाल– मुझे पालिटिक्स से कोई वास्ता नहीं है और न मैं इसके निकट जाता हूं। लेकिन मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हमारे मुस्लिम भाइयों ने हमारी गर्दन बुरी तरह पकड़ी है। दालमंडी और चौक के अधिकांश मकान हिंदुओं के हैं। यदि बोर्ड ने यह स्वीकार कर लिया, तो हिंदुओं का मटियामेट हो जाएगा। छिपे-छिपे चोट करना कोई मुसलमानों से सीखे। अभी बहुत दिन नहीं बीते कि सूद की आड़ में हिंदुओं पर आक्रमण किया गया था। अब वह चाल पट पड़ गई, तो यह नया उपाय सोचा। खेद है कि हमारे कुछ हिंदू भाई उनके हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। वे नहीं जानते कि अपने दुरुत्साह से अपनी जाति को कितनी हानि पहुंचा रहे हैं।
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