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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632
आईएसबीएन :978-1-61301-185

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


कृष्णचन्द्र– जानता तो आपसे क्यों पूछता?

मदनसिंह– तो पंडित उमानाथ से पूछिए।

कृष्णचन्द्र– मैं आपसे पूछता हूं?

मदनसिंह– बात दबी रहने दीजिए। मैं आपको लज्जित नहीं करना चाहता।

कृष्णचन्द्र– अच्छा समझा, मैं जेलखाने हो आया हूं। यह उसका दंड है। धन्य है आपका न्याय।

मदनसिंह– इस बात पर बारात नहीं लौट सकती थी।

कृष्णचन्द्र– तो उमानाथ से विवाह का कर देने में कुछ कसर हुई होगी?

मदनसिंह– हम इतने नीच नहीं हैं।

कृष्णचन्द्र– फिर ऐसी कौन-सी बात है?

मदनसिंह– हम कहते हैं, हमसे न पूछिए।

कृष्णचन्द्र– आपको बतलाना पड़ेगा। दरवाजे पर बारात लाकर उसे लौटा ले जाना क्या आपने लड़कों का खेल समझा है? यहां खून की नदी बह जाएगी। आप इस भरोसे में न रहिएगा।

मदनसिंह– इसकी हमको चिंता नहीं है। हम यहां मर जाएंगे, लेकिन आपकी लड़की से विवाह न करेंगे। आपके यहां अपनी मर्यादा खोने नहीं आए हैं?

कृष्णचन्द्र– तो क्या हम आपसे नीच हैं?

मदनसिंह– हां, आप हमसे नीच हैं।

कृष्णचन्द्र– इसका कोई प्रमाण?

मदनसिंह– हां, है।

कृष्णचन्द्र– तो उसके बताने में आपको क्यों संकोच होता है?

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