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सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632
आईएसबीएन :978-1-61301-185

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


विट्ठलदास ने कहा– अजी मैं हूं, क्या पंडितजी सो गए? जरा भीतर जाकर जगा तो दो, मेरा नाम लेना, कहना बाहर खड़े हैं, बड़ा जरूरी काम है, जरा चलें आएं।

जीतन मन में बहुत झुंझलाया। उसका हिसाब अधूरा रह गया, मालूम नहीं, अभी रुपया पूरा होने में कितनी कसर है। अलसाता हुआ उठा, किवाड़ खोले, पंडितजी को खबर दी। वह समझ गए कि कोई नया समाचार होगा, तभी यह इतनी रात को आए हैं। तुरंत बाहर निकल आए।

विट्ठलदास– आइए, मैंने आपको बहुत कष्ट दिया, क्षमा कीजिएगा। कुछ समझे, कहां से आ रहा हूं? सुमनबाई के पास गया था। आपका पत्र पाते ही दौड़ा कि बन पड़े, तो उसे सीधी राह पर लाऊं। इसमें उसी की बदनामी नहीं, सारी जाति की बदनामी है। वहां पहुंचा तो उसके ठाट देखकर दंग रह गया। वह भोली-भाली स्त्री अब दालमंडी की रानी है। मालूम नहीं, इतनी जल्दी वह ऐसी चतुर कैसे हो गई। कुछ देर तक चुपचाप मेरी बातें सुनती रही, फिर रोने लगी। मैंने समझा, अभी लोहा लाल है, दो-चार चोटें और लगाईं, बस आ गई पंजे में। पहले विधवाश्रम का नाम सुनकर घबराई। कहने लगी– मुझे पचास रुपये महीना गुजर के लिए दिलवाएं। लेकिन आप जानते हैं, यह पचास रुपए देने वाला कौन है? मैंने हामी न भरी। अंत में कहते-सुनते एक शर्त पर राजी हुई। उस शर्त को पूरा करना आपका काम है।

पद्मसिंह ने विस्मित होकर विट्ठलदास की ओर देखा।

विट्ठलदास– घबराइए नहीं, बहुत सीधी-सी शर्त है, बस यही कि आप जरा देर के लिए उसके पास चले जाएं, वह आपसे कुछ कहना चाहती है। यह तो मुझे निश्चय था कि आपको इसमें कोई आपत्ति न होगी, यह शर्त मंजूर कर ली। तो बताइए, कब चलने का विचार है? मेरी समझ में सबेरे चलें।

किंतु पद्मसिंह विचारशील मनुष्य थे। वह घंटों सोच-विचार के बिना कोई फैसला न कर सकते थे। सोचने लगे कि इस शर्त का क्या अभिप्राय है? वह मुझसे क्या कहना चाहती है? क्या बात पत्र द्वारा न हो सकती थी? इसमें कोई-न-कोई रहस्य अवश्य है। आज अबुलवफा ने मेरे बग्घी पर से कूद पड़ने का वृत्तान्त उससे कहा होगा। उसने सोचा होगा, यह महाशय इस तरह नहीं आते, तो यह चाल चलूं, देखूं कैसे नहीं आते। केवल मुझे नीचा दिखाना चाहती है। अच्छा, अगर मैं जाऊं भी, लेकिन पीछे से वह अपना वचन पूरा न करे तो क्या होगा? यह युक्ति उन्हें अपना गला छुड़ाने के लिए उपयोगी मालूम हुई। बोले– अच्छा, अगर वह अपने वचन से फिर जाए तो?

विट्ठलदास– फिर क्या जाएगी? ऐसा हो सकता है?

पद्मसिंह– हां, ऐसा होना असंभव नहीं।

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