उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
विट्ठलदास ऊपर बैठे हुए कौतुक देख रहे थे। समझ लिया कि अब अभिनय समाप्त हो गया। नीचे उतर आए। दीनानाथ ने चौंककर उन्हें देखा और छड़ी उठाकर शीघ्रतापूर्वक नीचे चले आए।
थोड़ी देर बाद सुमन ऊपर से उतरी। वह केवल एक उजली साड़ी पहने थी, हाथों में चूड़ियां तक न थीं। उसका मुख उदास था, लेकिन इसलिए नहीं कि यह भोग-विलास अब उससे छूट रहा है, वरन् इसलिए कि वह अग्निकुंड में गिरी क्यों थी। इस उदासीनता में मलिनता न थी, वरन् एक प्रकार का संयम था। यह किसी मदिरा-सेवी मुख पर छानेवाली उदासी नहीं थी, बल्कि उसमें त्याग और विचार आभासित हो रहा था।
विट्ठलदास ने मकान में ताला डाल दिया और गाड़ी के कोच-बक्स पर जा बैठे। गाड़ी चली।
बाजारों की दुकानें बंद थीं, लेकिन रास्ता चल रहा था। सुमन ने खिड़की से झांककर देखा। उसे आगे लालटेनों की एक सुंदर माला दिखाई दी। लेकिन ज्यों-ज्यों गाड़ी बढ़ती जाती थी, त्यों-त्यों वह प्रकाशमाला भी आगे बढ़ती जाती थी। थोड़ी दूर पर लालटेनें मिलती थीं, पर वह ज्योतिर्माला अभिलाषाओं के सदृश दूर भागती जाती थी।
गाड़ी वेग से जा रही थी। सुमन का भावी जीवन-यान भी विचार-सागर में वेग के साथ हिलता, डगमगाता, तारों के ज्योतिर्जाल में उलझता चला जाता था।
२३
सदन प्रातःकाल घर गया, तो अपनी चाची के हाथों में कंगन देखा। लज्जा से उसकी आंखें जमीन में गड़ गईं। नाश्ता करके जल्दी से बाहर निकल आया और सोचने लगा, यह कंगन इन्हें कैसे मिल गया?
क्या यह संभव है कि सुमन ने उसे यहां भेज दिया हो? वह क्या जानती है कि कंगन किसका है? मैंने तो उसे अपना पता भी नहीं बताया। यह हो सकता है कि यह उसी नमूने का दूसरा कंगन हो, लेकिन इतनी जल्दी वह तैयार नहीं हो सकता। सुमन ने अवश्य ही मेरा पता लगा लिया है और चाची के पास यह कंगन भेज दिया है।
सदन ने बहुत विचार किया। किंतु हर प्रकार से वह इस परिणाम पर पहुंचता था। उसने फिर सोचा। अच्छा, मान लिया जाए कि उसे मेरा पता मालूम हो गया, तो क्या यह उचित था कि वह मेरी दी हुई चीज को यहां भेज देती? यह तो एक प्रकार का विश्वासघात है?
अगर सुमन ने मेरा पता लगा लिया है, तब तो वह मुझे मन में धूर्त, पाखंडी, जालिया समझती होगी? कंगन को चाची के पास भेजकर उसने यह भी साबित कर दिया कि वह मुझे चोर समझती है।
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