धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
एक दूसरे मित्र ने पूछा है कि क्या सभी धर्मों को जब मैं बिमारी कहता हूँ, कल ही मैंने कहा। कल ही किसी ने पूछा था कि तीन सौ धर्मो में श्रेष्ठ धर्म कौन सा है? आज फिर कोई उन्हीं के मित्र आ गए, वे शायद कल मौजूद नहीं थे। जहाँ तक तो वे जरूर मौजूद रहे होंगे। वे यह पूछ रहे हैं कि और सब धर्मों के बाबत तो आपने ठीक कहा, लेकिन जैन धर्म के बाबत आपकी बात बड़ी गड़बड़ है। यह जैन धर्म उनका धर्म होगा। ये पोलैंड के निवासी फिर उपलब्ध हो गए। वह मुसलमान कहेगा कि और सबके बाबत तो आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं, दो सौ निन्यानबे धर्मों के बाबत बिलकुल सच है आपकी बात। जरा एक छोटी-सी भूल कर रहे हैं, इस्लाम के बाबत आप ठीक-ठीक नहीं कह रहे हैं। वही ईसाई कहेगा, वही हिंदू कहेगा, वही सब कहेंगे। वे सब कहेंगे कि दो सौ निन्यानबे की बाबत आपकी बात तो बिलकुल ठीक है, लेकिन एक के बाबत आपकी बात गलत है। मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि दो सौ निन्यानबे को जाने दें भाड़ में, जिस धर्म को आप मानते हैं उसी के संबंध में मैं कह रहा हूँ। दूसरे धर्मो से क्या लेना-देना है? वह एक धर्म जरूर गलत है, बाकी दो सौ निन्यानबे गलत हों या न हों, उनसे कोई मतलब नहीं है; उनसे कोई प्रयोजन नहीं है हमारा। मैं तो आपके ही धर्म के बाबत कह रहा हूँ, जो भी आपका धर्म हो, वो-- चाहे जैन, चाहे हिंदू, चाहे मुसलमान। बड़ी सुविधा है इस बात में क्योंकि दूसरों के धर्म गलत हों तो बड़ी खुशी होती है मन में। पीड़ा तो वहाँ से शुरू होती है जहाँ आपको लगता है कि आपकी पकड़ भी, आपकी जकड़ भी तो कहीं गलत नहीं है?
उन्हीं मित्र ने यह भी पूछा है कि--और यह भी हो सकता है कि जैन साधु आजकल जो धर्म प्रचार करते हों, वह गलत हो लेकिन महावीर का उपदेश तो गलत नहीं हो सकता।
आपको पता है कि महावीर का उपदेश क्या है? कभी महावीर यहाँ मौजूद हों और इतने लोग उन्हें सुनें, और आप दरवाजे के बाहर जाकर पूछें कि उन्होंने क्या कहा है, तो आप समझते हैं कि सभी लोग एक बात कहेंगे? जितने लोग होंगे, उतनी बातें होंगी।
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