धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार अमृत द्वारओशो
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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ
सवाल यह है, हम जिस माइंड की, जिस मेकअप की जो साइकालाजिकल फ्रेम है हमारे दिमाग का, हिंदुस्तान का ऐसे जैसे फ्रेम ऐसा है कि उसे फ्रेम से संपत्ति नहीं पैदा की जा सकती। तो हम दरिद्र रहेंगे उस फ्रेम को हमें तोड़ना पड़ेगा। हमें कहना पड़ेगा कि कम जरूरतें कोई आदर की बात नहीं है। क्योंकि जरूरतें बढ़ें तो आदमी श्रम करता है। और सोचता है कि हम जरूरतों को कैसे पूरा करें? अमरीका आसमान से अमीर नहीं हो गया। तीन सौ वर्षों से उन्होंने फिलासफी पकड़ी है जरूरत को बढ़ाने की, उससे संपदा पैदा हुई है। हम पांच हजार वर्ष से जो फिलासफी पकड़े हैं जरूरत को कम करने की, उससे दरिद्र हुए हैं। मेरा कहना है, उत्पादन की व्यवस्था में जो क्रांति होती है, वह भी बहुत बुनियाद में आपके मन से आती है? आपके मन का ढांचा अगर ऐसा है जैसे कि यहां रह रहे हैं, बंबई में भी एक आदमी रह रहा है, वही पास के एक पहाडी में एक आदिवासी रह रहा है। मैं दोनों एक ही सेंचुरी में रह रहे हैं। अमरीका में एक आदमी रह रहा है, अफ्रीका में एक आदमी रह रहा है, हम सभी बीसवीं सदी में रह रहे हैं। बस्तर में कोल भील रह रहे हैं, ये सभी इसी सदी में रह रहे हैं जिसमें हम और आप रह रहे हैं। लेकिन यह कोल भील बस्तर का समृद्ध क्यों नहीं हो सका। यह धनी क्यों नहीं हो सका? इसके माइंड का जो फ्रेम है, वह इसको कभी समृद्ध नहीं होने दे सकता है। यह और दस हजार साल ऐसे ही रहेगा, इसमें कोई फर्क नहीं आने वाला है जब तक कि हम इसका मन का फ्रेम नहीं बदल देते। हिंदुस्तान में भी जो आज आपको थोडी बहुत प्रगति दिख रही है वह सिर्फ गुलामी का फल है आपको, इससे ज्यादा नहीं। नहीं तो आप दो सौ साल पहले जिस हालत में थे आप उसी हालत में होते। आपका फ्रेम ऐसा है दिमाग का। बड़े मजे की बात यह है कि अभी हमको जो थोड़ा बहुत गति दिखायी पड़ रही है सोचने में वह सारी की सारी गति पश्चिम में हम पर आयी है। सारी गति हम पर पश्चिम से आयी है। और नहीं तो हम चर्खे ही कात रहे होते और बैलगाड़ी में ही चल रहे होते। अगर पश्चिम का इम्पैक्ट न हो हिंदुस्तान पर, तो हिंदुस्तान की जो फिलासफी थी, इतनी जड़ थी और उसकी इतनी पुरानी परंपरा थी कि उसको हिलाना मुश्किल था। यह जो थोड़ी बहुत हिलावट पैदा हुई वह सिर्फ इसलिए कि पश्चिम के संपर्क ने एक नयी फिलासफी से हमारा संपर्क जोड़ा और हमें पहली दफा दिखायी पड़ा कि अगर यही फ्रेम वर्क में जीते चले आते हैं तो कभी समृद्ध नहीं हो सकते। कोई उपाय नहीं है हमारा।
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