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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

फिर क्या होगा?

दबाना नहीं है, लेकिन कुछ और करना है। करना यह है कि मन के ऊपर का जो हिस्सा चेतन है, जो कांशस है, जहाँ प्रकाश है, उस प्रकाश को मन के उन हिस्सों में भी ले जाना है, जहाँ अंधकार है। पूरे मन को प्रकाशित कर देना है। पूरे मन में दीया जला देना है—होश का, ज्ञान का। अभी थोड़ी सी जगह में प्रकाश हो रहा है--दीए की ज्योति को और बड़ा करना है, ताकि पूरे मन की तीनों मंजिलें, वह जो थ्री स्टोरीज आदमी है--वह उन तीनों मंजिलों में प्रकाश पहुँच जाए।

सबसे पहला काम प्रकाश पहुँचाना है। जैसे ही प्रकाश पहुँचना शुरू होता है, मन में एक ट्रांसफार्मेशन शुरू हो जाता है। आपको शायद खयाल भी न हो। सूरज निकलता है, सूरज के निकलते ही पृथ्वी पर एक परिवर्तन शुरू हो जाता है। जो कलियां बंद थी, वे खिलने लगती हैं। जो सुगंध छिपी थी, वह प्रगट होने लगती है। जैसे ही प्रकाश सूरज का पृथ्वी पर उतरता है, सारा प्राण जो सोया हुआ था, वह जागने लगता है। वृक्ष, पौधे, पशु, पक्षी, जो सोए थे, वे उठकर गीत गाने लगते हैं। वे जीवंत हो उठते हैं। सूरज की रोशनी के आते ही पृथ्वी दूसरी हो जाती है। सूरज की रोशनी के हटते ही, अंधकार छाते ही पृथ्वी मूर्च्छित हो जाती है। सब सो जाता है। पौधे, पशु, पक्षी, आदमी सब मूर्च्छित हो जाते हैं। सूरज के उगते ही मूर्च्छा टूटनी शुरू हो जाती है--जागरण आना शुरू हो जाता है, प्रभात हो जाती है।

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