धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
मन की दो मंजिलों में कभी प्रकाश नहीं पहुँचा है। वहाँ एकदम गहरी मूर्च्छा है। वहाँ सब सोया हुआ है। वहाँ एकदम घना अंधकार है। उस घने अंधकार में सांप-बिच्छुओं ने डेरे डाल लिए हैं। पतंगों ने घर बना लिए हैं। मकड़ियों ने जाले बुन लिए हैं। वहाँ सब गंदा हो गया है। वहाँ के द्वार कभी नहीं खुले, वहाँ बहुत दुर्गंध इकटठी हो गई है। और हम ऊपर से दमन करते चले जाते हैं सारे कचरे का वहाँ। वहाँ सारा कचरा इकट्ठा हो गया है। मनुष्य का प्राण इससे भारी और बोझिल और मूर्च्छित है। वहाँ रोशनी ले जानी है। वहाँ प्रकाश ले जाना है। प्रकाश ले जाया जा सकता है। उस प्रकाश के ले जाने की विधि का नाम ही धर्म है। कैसे हम चित्त की गहराइयों में रोशनी ले जा सकें, कैसे वहाँ प्रकाश पहुँचा सकें कि वहाँ अंधकार का राज्य समाप्त हो जाए और हमारे सारे प्राण आलोकित हो उठें।
उस प्रकाश के पहुँचते ही चित्त में परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। उस प्रकाश के पहुँचते ही जो कमी थी, वह खिलकर फूल बन जाती है। उस प्रकाश के पहुँचते ही भीतर जो प्राण सोए थे, वे जाग उठते हैं। और जागरण के साथ अंतर शुरू हो जाता है। जागरण ट्रांसफार्मेशन है। कैसे हम चित्त में ले जाएं जागरण को, होश को, अवेयरनेस को, कैसे हमारे पूरे प्राण जागे हुए हो जाएं और जिस दिन पूरे प्राण जग जाते हैं, उस दिन प्राणों में एक संबंध स्थापित हो जाता है। फिर मनुष्य तीन हिस्सों में खंडित नहीं रह जाता। फिर वह एक भवन बन जाता है पूरा। और जो मनुष्य एक भवन बन जाता है, उसके भीतर फिर कोई द्वंद्व नहीं, कोई कलह नहीं। उसके भीतर एक शांति स्थापित हो जाती है।
इसलिए सर्वाधिक मूल्यवान जीवन का सूत्र चित्त के अंधेरे कक्षों में रोशनी के ले जाने का है। उस संबंध में ही आज की सुबह हमें बात करनी है। कैसे हम चित्त में प्रकाश को ले जा सकते हैं? थोड़ा सा प्रकाश मौजूद है। अगर उतना प्रकाश मौजूद न हो तो फिर हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। लेकिन थोड़ा प्रकाश मौजूद है। हमारे मन का एक कोना, थोड़ा सा दीया जला हुआ है, वहाँ रोशनी हो रही है। उसी रोशनी में आप मेरी बातें सुन रहे हैं। उसी रोशनी में आप चल रहे हैं। उसी रोशनी में आप उठ रहे हैं, विचार कर रहे हैं, जी रहे हैं। छोटी सी रोशनी में।
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