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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

लेकिन भीतर के जगत में समाज के सदस्य होने की कोई अनिवार्यता नहीं है। बाहर कानून होगा, सड़क के नियम होंगे, समाज के नियम होंगे, वे ठीक हैं। बाहर आप समाज के एक सदस्य हैं। लेकिन भीतर--भीतर आपको अगर परमात्मा का एक साथी होना है तो समाज का सदस्य आपको नहीं रह जाना पड़ेगा। भीतर के जगत में आपको भीड़ से मुक्त हो ही जाना चाहिए, तो ही आपका मन ताजा हो सकता है।

तो मेरी बात को आप गलत नहीं लेगे। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप उच्छृंखल हो जाएं। और आपको जहाँ से चलना हो, वहाँ से चलने लगे।

नहीं, मैं आपसे यह कह रहा हूँ कि एक तल है चेतना का भीतर, वहाँ किसी समाज के नियम की कोई भी जरूरत नहीं। वहाँ आपको हिंदू और मुसलमान, ईसाई और जैन होने की कोई भी जरूरत नहीं है। और वहाँ आप जब तक हिंदू, जैन, मुसलमान, ईसाई बने रहेंगे, तब तक--तब तक आप जो हैं, उसे कभी नहीं जान सकते। भीड़ ने आपके भीतर अपने पंजे फैला दिए हैं, और आपकी आत्मा को पकड़ लिया है। और आप राजी हैं, इसलिए यह बंधन पैदा हुआ है। आप गैर-राजी हो जाए, यह बंधन इसी क्षण गिर जाता है।

आपके सहयोग के बिना कोई आपको मानसिक रूप से गुलाम नहीं बना सकता। शारीरिक रूप से बना सकता है। शारीरिक रूप से आप गुलाम बनाए जा सकते हैं, आपके बिना सहयोग के। लेकिन मानसिक, वह जो मेटल स्लेवरि है, वह जो मानसिक दासता है, वह आपके सहयोग के बिना कोई कभी खडी नहीं कर सकता। क्योंकि आपके सिवाय आपके मन में किसी की कोई गति नहीं है। जब आप राजी होते हैं तो आपका चित्त गुलाम होता है, अन्यथा गुलाम नहीं होता है।

क्या आप उस तल पर गैर-राजी होने को तैयार हैं क्या उस तल पर आप इनकार करने की हिम्मत रखते हैं? क्या वहाँ आप नो कह सकते हैं? हम सब यस-शेअर हैं, हमेशा हाँ कहने वाले लोग हैं। हममें से नो-शेअर कोई भी नहीं है, जो कह सके नहीं। और जो आदमी भीतर के तल पर नहीं, नहीं कह सकता, वह कभी स्वतंत्र नहीं हो सकता। हम हमेशा हाँ कहने को तैयार हैं। हमारे इस हाँ कहने ने हमारे मन को बासा, गुलाम, दास, पुराना और जीर्ण-जर्जर बना दिया है।

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