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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

अब हमारे हाथ में--एक छायाओं का स्वप्नजाल हाथ में रह गया। उसी को पकड़कर जो रुक जाएगा, वह सत्य तक नहीं पहुँच सकता। छाया छोड़नी पड़ेगी और उस दिशा में खोज करनी पड़ेगी, जहाँ से छाया आती है, जहाँ से छाया बनती है। अगर हम छाया को छोड़ते चले जाएं उस दिशा में, जहाँ से छाया का जन्म होता है--तो शायद हम सत्य पर पहुँच जाएं। शास्त्र को पकड़कर कोई सत्य पर नहीं पहुँचेगा।

शास्त्र को जितना छोड़ेगा, उतना शास्त्र के पीछे हटेगा। शब्द को छोड़ेगा, निःशब्द की तरफ बढ़ेगा--किसी दिन उसे सत्य उपलब्ध हो सकता है। शास्त्रों से ज्यादा सत्य के मार्ग में और कोई बाधा नहीं है। लेकिन हमें बड़ी चोट पहुँचती है।

सुबह एक मित्र ने आकर कहा, वेद आप कहते हैं सत्य नहीं है।

उन्हें पीड़ा पहुँची होगी। इसलिए नहीं कि वेद सत्य नहीं है। बल्कि इसलिए कि वेद उनका शास्त्र है।

एक मुसलमान को कोई चोट न पहुँचेगी इस बात से कि वेद में कुछ भी नहीं है। क्योंकि वेद उसका शास्त्र नहीं है। एक हिंदू को कोई चोट न पहुँचेगी, कह दिया जाए कुरान मेँ कोई सत्य नहीं है। वह प्रसन्न होगा बल्कि कि बहुत अच्छा हुआ कि कुरान में कोई सत्य नहीं, यह तो हम पहले से ही कहते थे। यह तो प्रसन्नता की बात है। लेकिन एक मुसलमान को चोट पहुँचेगी। क्यों क्या इसलिए कि कुरान में सत्य नहीं है बल्कि इसलिए कि कुरान उसका शास्त्र है।

शास्त्रों के साथ हमारे अहंकार जुड़ गए हैं, हमारे इगो जुड़ गए हैं। मेरा शास्त्र। शास्त्र की कोई फिक्र नहीं है, मेरे को चोट पहुँचती है।

और बड़ा मजा यह है कि वेद आपका शास्त्र कैसे हो गया, क्योकि आप एक समूह में पैदा हुए, जहाँ बचपन से एक प्रपोगेंडा चल रहा है कि वेद आपका शास्त्र है। अगर आप दूसरे समूह में पैदा होते, और वहाँ प्रपोगेंडा चलता होता कि कुरान आपका शास्त्र है, तो आप कुरान को शास्त्र मान लेते। आप किसी तरह के प्रचार के शिकार हैं।

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