धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
फिर रोज-रोज दोहराने से--आदमी का चित्त इतना कमजोर है कि रिपिटीशन को वह भूल जाता है कि यह क्या हो रहा है, रोज-रोज दोहराया जाता है। आपको पता भी नहीं है। रास्ते पर निकलते हैं, लक्स टायलेट सबसे अच्छा साबुन है, दरवाजे पर लिखा हुआ है। अखबार खोलते हैं, लक्स टायलेट सबसे अच्छा साबुन है। रेडियो चलाते हैं, लक्स टायलेट सबसे अच्छा साबुन है। रोज-रोज सुनते, जब एक दिन आप बाजार में जाते हैं दुकान पर साबुन खरीदने को, आप कहते हैं मुझे लक्स टायलेट साबुन चाहिए। और आपको पता नहीं कि यह आप नहीं कह रहे है, आप से कहलवाया जा रहा है। आपको लक्स टायलेट का पता भी नहीं था।
एक प्रपोगेंडा आपके चारों तरफ हो रहा है और आपके मुंह से, आपके कान में आवाज डाली जा रही है बार-बार, जो कि एक दिन आपके मुंह से निकलनी शुरू हो जाएगी, और आप इस भ्रम में होंगे कि मैंने लक्स टायलेट साबुन खरीदा। आपसे खरीदवा लिया गया है। और जो लक्स टायलेट के संबंध में सही है, वही कुरान, बाइबिल, वेद, उपनिषद के संबंध में भी सही है। हम अदभुत रूप से प्रचार के शिकार हैं। सारी मनुष्य जाति शिकार है। और इस प्रचार में जितना आदमी बंध जाता है, उतना परतंत्र हो जाता है।
तो मैं शास्त्रों का विरोधी नहीं हूँ, लेकिन यह आपको कह देना चाहता हूँ कि आपको भी शास्त्रों से कोई मतलब नहीं है। आप सिर्फ प्रचार के शिकार हो गए हैं, और कुछ भी नहीं हैं।
आपके घर में, हिंदू घर में एक बच्चा पैदा हो, उसको मुसलमान के घर में रख दीजिए। वह बडे होने पर वेद को ईश्वरीय वाणी नहीं कहेगा, हालाकि हिंदू घर में पैदा हुआ था, खून हिंदू था। सच तो यह है कि पागलपन की बातें हैं। खून भी कहीं हिंदू होता है कि हड्डियां हिंदू होती हैं, मुसलमान होती हैं, हिंदू होना भी एक प्रचार है। वह मुसलमान घर में रखा गया, मुसलमान हो जाएगा। ईसाई घर में रखा गया, ईसाई हो जाएगा।
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