धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
इसीलिए सभी धर्मगुरु बच्चों में बहुत उत्सुक होते हैं। स्कूल खोलते हैं, धर्म-स्कूल खोलते हैं, क्योंकि बच्चे मौका हैं, जहाँ प्रचार को दिमाग में डाला जा सकता है, और जीवनभर के लिए उन्हें गुलाम बनाया जा सकता है। जब तक जमीन पर एक भी ऐसा स्कूल है, जो धर्म की शिक्षा देता है, तब तक जमीन पर बहुत बड़े पाप चलते रहेंगे, क्योंकि बच्चों को जकडने की, गुलाम बनाने की वहाँ सारी योजना की जा रही है।
तो मैंने जो कहा, इसलिए नहीं कहा कि किन्हीं किताबों से मुझे कोई दुश्मनी है, मुझे किताबों से क्या लेना-देना। लेकिन सच्चाइयां तो समझ लेनी जरूरी है।
उन्हीं मित्र ने, एक और मित्र ने पूछा है, कि हमारे संत-महात्मा, ऋषि-मुनि जो कहते हैं, क्या वह सब गलत है?
मैंने तो नहीं कहा कि वह सब गलत है। मैंने तो इतना ही कहा कि आप उसे पकड़ लें, तो यह पकड़ लेना गलत है। ऋषि-मुनियों से मुझे कोई वास्ता नहीं। क्योंकि ऋषि-मुनि बड़े खतरनाक होते हैं, उनसे वास्ता रखना खतरनाक है। अभी हिदुस्तान के ऋषि-मुनि और शंकराचार्य हाइकोर्टों में मुकदमा लडते हैं। उनसे दोस्ती रखना, उनकी बात ही करना खतरनाक है।
लेकिन आप किसको ऋषि कहने लगते हैं, किसको मुनि कहने लगते हैं, और कैसे? और कैसे आप पता लगा लेते हैं? आपके पास जांच क्या है? मापदंड क्या है? आपके पास कसौटी क्या है कि फला आदमी ऋषि है और मुनि है सिवाय प्रपोगेंडा के और तो कोई कसौटी नहीं मालूम पड़ती।
रामकृष्ण को हिंदू तो कहेंगे कि परमहंस हैं। लेकिन किसी जैन से पूछे वे कहेंगे, कैसे परमहंस? मछली खाते हैं। उसकी कसौटी में बिलकुल न उतरेंगे। वे कहेंगे, इनसे तो एक साधारण जैनी अच्छा, कम से कम मछली तो नहीं खाता, मांसाहार तो नहीं करता। ये कैसे संत। ये किस प्रकार के संत हैं?
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