धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
अगर एक दिगंबर जैन से पूछो कि क्राइस्ट ज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं। वे कहेंगे, कैसे उपलब्ध हो गए हैं महावीर तो नग्न खड़े हुए हैं, यह आदमी तो कपड़े पहने हुए है। तो कपड़े पहने हुए आदमी भी कहीं ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है। झूठी है यह बात। यह नहीं हो सकता।
कसौटियां भी हमारे हजारों साल के प्रचार से निर्मित हो गई हैं। और जिसको बचपन से जो कसौटी पकड़ गई है, वह उसी पर तौल रहा है कि कौन ऋषि है, कौन मुनि है। अपना हमें पता नहीं कि हम क्या हैं। और हम यह भी तय कर लेते हैं कि कौन ऋषि है, कौन मुनि है, कौन परमहंस है, कौन ज्ञानी है। और झगडते भी हैं इस बात पर कि फलां आदमी तीर्थंकर है, और फलां आदमी भगवांन का अवतार है, फलां आदमी ईश्वर का पुत्र है। और अगर कोई इनकार कर दे तो यह झगड़े की बात है। कैसे आप पता लगा लेते हैं, किसने आपको बताया?
मेरे एक मित्र थे। एक छोटे-मोटे महात्मा थे वे भी। ऐसे महात्मा हमारे यहाँ होते ही हैं। वे एक गांव में चंदा मांगने गए थे। मैं भी उस गांव में था। उन्होंने चंदा दिनभर मांगा, वे कोई पद्रह-बीस रुपए मुश्किल से इकटठा कर पाए। वे मुझसे बोले कि इससे ज्यादा तो कुछ होता नहीं। मैंने कहा, आप बिलकुल गलत ढंग से चंदा वसूल करते हैं--आपको कौन चंदा देगा?
पहले ऋषि-मुनि हो जाइए, फिर चंदा मिल सकता है।
मैंने उनसे कहा, दस-पंद्रह लोगों को पहले कहिए कि एक महात्मा जी आए हुए हैं। सारे गांव में खबर करिए कि महात्मा जी आए हैं। फिर दस-पच्चीस लोग आपके साथ जाएं कि महात्मा जी आए हैं, फिर चंदा हो सकता है।
उनको बात समझ में आ गई। उनके दस-पंद्रह लोगों ने गांव में प्रचार किया कि एक बहुत बड़े महात्मा आए हुए हैं। जिन दुकानों पर उनको चार आने बामुश्किल से दुकानदार ने दिए थे, इसलिए ताकि ये यहाँ से हटें, उसी दुकान पर उनको बहुत रुपए भी मिले, उसने पैर भी छुए, उनके गले में माला भी डाली। वे तो उन्होंने दो-चार-आठ दिन में वहाँ सैकड़ों रुपए इकटठे किए।
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