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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

इससे तो यह बिलकुल सिद्ध होता है कि मैं पैगंबर हूँ। क्योंकि हमेशा हमेशा पर मुसीबत आती है, पत्थर मारे जाते हैं, चोटें की जाती हैं। यह बात वह कह ही रहा था कि पीछे सीखचों में बंद एक आदमी चिल्लाया कि यह बिलकुल झूठ बोल रहा है। इस आदमी को एक महीने पहले बंद किया गया था।

उस सुलतान ने पूछा कि कैसे तुम कहते हो, यह झूठ बोल रहा है उस आदमी ने कहा, आप भूल गए। मैं खुद परमात्मा हूँ। मोहम्मद के बाद मैंने किसी को भेजा ही नहीं, यह आदमी बिलकुल झूठ बोल रहा है। वे परमात्मा के जुर्म में गिरफ्तार किए गए थे एक महीने पहले। उसने कहा, यह बिलकुल सरासर झूठ बोल रहा है कि यह पैगंबर है, मैंने इसको कभी पैगंबर बनाया ही नहीं। मोहम्मद के बाद मैंने किसी को बनाया ही नहीं।

अब इनको हम जानते हैं, इनका इलाज होना चाहिए। ये आदमी पागल हो गए। इनके अहंकार ने अंतिम घोषणा कर दी। इनका अहंकार फूलकर अंतिम गुब्बारा बन गया। अब यह विक्षिप्त स्थिति की अंतिम सीमा पर है। जब आदमी पागल होते हैं, तो वे पैगंबर होने के दावे शुरू कर देते हैं। और जब किताबें पागल हो जाती हैं भक्तों के कारण, तो वे शास्त्र बन जाती हैं।

शास्त्र के लिए तो मैंने जो कुछ कहा, जरूर कहा। लेकिन किताब के खिलाफ मैंने कुछ भी नहीं कहा है। गीता किताब रहे, कुरान किताब रहे, वेद किताब रहे--बड़ा स्वागत है उनका पुस्तकालय में, और सब किताबों के साथ उनको भी रैक पर जगह होगी। लेकिन शास्त्र अब दुनिया में नहीं चल सकते। क्योंकि शास्त्रों ने एक तरह का पागलपन पैदा किया है। और शास्त्र सत्य की खोज में बाधा बन गए अपने दावों के कारण। और शास्त्रों पर विश्वास की शिक्षा ने मनुष्य को जड़ता सिखा दी है। विचार नहीं, चिंतन नहीं--आस्था, अंधी आस्था, अंधविश्वास। इसलिए मैंने कहा।

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