धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
|
5 पाठकों को प्रिय 434 पाठक हैं |
माथेराम में दिये गये प्रवचन
जिनके पास देखने की आँख होती है, उन्हें तो न मालूम कैसी चीजों में क्या दिखाई पड़ जाता है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। एक वृक्ष से सूखा पत्ता गिरता है और उनका जीवन बदल जाता है। एक मटकी फूट जाए और उनका जीवन बदल जाता है।
मैंने सुना है, एक युवा सत्य की खोज में था। और न मालूम कहाँ-कहाँ भटका। और एक दिन पतझड़ होती थी और वृक्ष से सूखे पते गिर रहे थे और हवाएं उन पत्तों को जगह-जगह नचा रही थीं--पूर्व और पश्विम। और वह युवक खड़ा देख रहा था--और वह नाच उठा, और उसे वह मिल गया जिसकी वह खोज में था।
और बाद में जब लोग उससे पूछे, तुम्हें मिला क्या उन सूखे पत्तों को हवा में उड़ते देखकर उसने कहा, सूखे पत्तों को हवा में उड़ते देखकर मुझे मेरे संबंध में सारी समझ आ गई। मुझे दिखाई पडा--मैं भी एक पत्ते से ज्यादा कहाँ हूँ। जिसे हवाएं पूरब ले जाती हैं, तो पूरब जाता है, पश्विम ले जाती हैं, तो पश्विम जाता है। और तब से मैं एक सूखा पत्ता ही हो गया हूँ। अब मेरा कोई रेजिस्टेंस नहीं है, अब जीवन के प्रति मेरा कोई विरोध नहीं। जीवन जहाँ ले जाता है, मैं चला जाता हूँ।
और जिस दिन से मैंने अपना विरोध छोड़ दिया है जीवन से, उसी दिन से मेरे जीवन का सारा दुःख विलीन हो गया। अब मैं जानता हूँ कि मैं दुखी था, अपने कारण--चूकि मैं था।
अब मैं सूखे पत्ते की तरह हूँ--हवाएं जहाँ ले जाती हैं, चला जाता हूँ। हवाएं नहीं ले जाती, तो वहीं पड़ा रह जाता हूँ। हवाएं आकाश में उठा लेती हैं, तो आकाश में उठ जाता हूँ। हवाएं नीचे गिरा देती हैं, तो नीचे गिर जाता हूँ। अब मेरा अपना कोई होना नहीं है। अब मैं नहीं हूँ। अब हवाएं है और मैं एक सूखा पत्ता हूँ। लेकिन यह मुझे एक सूखे पत्ते से ही दिखाई पड़ा था।
|