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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551
आईएसबीएन :9781613014509

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

थोड़ी सी बातें उस आँख, यानी ध्यान के संबंध में और फिर उसके बाद हम ध्यान के लिए बैठेंगे।

ध्यान के संबंध में दो-तीन छोटी सी बातें समझ लेनी बहुत जरूरी है।

एक तो क्योंकि ध्यान ही आँख है। और उस ध्यान से ही परमात्मा का शास्त्र पढ़ा जा सकता है। और उस ध्यान से ही जीवन के जो छिपे हुए रहस्य हैं, वे अनुभव में आ सकते हैं।

तो ध्यान को ठीक से समझ लेना जरूरी है कि ध्यान क्या है?

ध्यान को समझने में सबसे बड़ी जो बाधा है, वह ध्यान के संबंध में हमारी बहुत सी धारणाएं है। वे धारणाएं रोक देती हैं--समझ हम नहीं पाते कि ध्यान क्या है।

ध्यान के संबंध में, एक तो निरंतर हजारों वर्षों से यह खयाल पैदा हुआ है कि ध्यान कोई एफर्ट है, कोई प्रयत्न है, कोई चेष्टा है। कोई बहुत चेष्टा करनी है ध्यान के लिए। ध्यान चेष्टा नहीं है। बल्कि ध्यान चित्त की बडी निश्चेष्ट, बडी एफर्टलेस, बडी प्रयत्नरहित अवस्था और दशा है। जितनी आप ज्यादा चेष्टा करेंगे, उतना ही ध्यान मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि चेष्टा में आपका चित्त तन जाएगा, खिंच जाएगा, तनाव से बेचैन हो जाएगा और जो चित्त बेचैन है, वह ध्यान मंन नहीं जा सकता है।

तो ध्यान के संबंध में पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है कि ध्यान है एफर्टलेसनेस, समस्त प्रयास रहितता। कोई प्रयास नहीं है ध्यान।

क्या आप बैठे हैं आँख बंद करके, प्राणायाम करके--दबा रहे हैं खुद के चित्त को, खींच रहे हैं, ला रहे हैं--यहाँ से वहाँ, इस पर लगा रहे हैं, उस पर लगा रहे हैं--यह सब ध्यान नहीं है। यह होगा व्यायाम। इससे ध्यान का कोई संबंध नहीं। कोई कसरत करनी हो, तो बात अलग है। यह कसरत है--इस तरह का जो ध्यान है।

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