धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति असंभव क्रांतिओशो
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माथेराम में दिये गये प्रवचन
मेरी दृष्टि में ध्यान तो एक विश्राम है, टोटल रिलेक्सेशन है। चित्त इतना निष्क्रिय, इतना अक्रिय, इतना निश्चेष्ट कि जैसे कुछ भी नहीं कर रहा है। जैसे कोई झील चुपचाप सोई है। और उस चुपचाप सोई झील में चांद का प्रतिबिंब बन रहा है, रिफ्लेक्शन बन रहा है। ऐसा ही चित्त जब एक झील की तरह शांत, चुपचाप सोया है, चुपचाप मौन पड़ा है, तब, तब चित्त एक दर्पण बन जाता है। और उसमें जीवन का जो शास्त्र है, परमात्मा का जो शास्त्र है, वह प्रतिफलित होने लगता है, उसके प्रतिबिंब बनने लगते हैं।
तो ध्यान के लिए पहली तो बात है--कि हम प्रयास न करें। हमारा जीवन तो सब प्रयास है। हम जो भी करते हैं, प्रयास से ही करते हैं। अप्रयास का हमें कोई पता ही नहीं, कोई खयाल ही नहीं। वह हमारे जीवन का अनुभव ही नहीं है।
लेकिन कुछ चीजे हैं जो प्रयास से नहीं आती। जैसे आपके परिचय में एक चीज है--नींद। नींद प्रयास से नहीं आती। अगर आप कोशिश करे नींद लाने की, तो आपकी कोशिश ही नींद नहीं आने देगी। करें, कोशिश करके देखें, किसी दिन नींद लाने की कोशिश करके देखें करवट बदलें, जंत्र-मंत्र पढें, कुछ और करें, कुछ देवी-देवताओं का स्मरण करें, और नींद लाने की कोशिश करें, उठें, बैठें, दौडें, नींद लाने की कोशिश करें, आप जितनी कोशिश करेगे, नींद उतनी दूर हो जाएगी।
जिन लोगों को नींद न आने की बीमारी होती है, उनको असल में पता ही नहीं है, उनको नींद न आने की बीमारी नहीं है, उनको नींद लाने की बीमारी है। वह नींद लाने की जो कोशिश में पड़ गए हैं, तो एक चक्कर खड़ा कर लिया है, अब नींद उन्हें नहीं आ सकती।
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