उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘....इसी मारे कहित है बिटिया! अगर कौनों लड़का तूसे कहे कि उ तूसे प्यार करत है, तो समझ लो उ झूठ बोलत है!‘‘ रुकमणि ने समझाया।
गंगा ने सुना। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ ये सब जानकर।
‘‘हाँ अम्मा! तू सही कहत हो!‘‘ गंगा ने अपनी बड़ी सी खोपड़ी हिलायी जैसे कोई बहुत बुद्धिमत्ता वाली बात पता चली हो।
गंगा ने अपनी माँ के कथनों को सौ में सौ सच-सच मान लिया। मैंने देखा....
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अगला दिन।
गंगा आई और उसने संगीता को अपनी माँ की कही सारी बातें बिल्कुल ज्यों की त्यों फोटोकापी करके बतायीं।
संगीता ने सारी बात देव को बतायीं।
देव को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसे झटका सा लगा ये बात जानकर कि गंगा ने देव के प्यार को गलत वाला प्यार मान लिया है। मैंने पाया....
‘‘नहीं! नहीं! संगीता!‘‘ देव बड़ी ऊँची आवाज में बोला।
‘‘मैं गंगा से कोई दो-चार दिन वाला मजा-वजा नहीं चाहता हूँ! मैं तो उससे सच्चा प्यार करता हूँ, तुम जो जानती हो!‘‘ देव बोला।
संगीता ने सुना।
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