उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘....तभी तो मैं इतने दिनों से उसके बाबू से मिल रहा हूँ!‘‘ देव बोला।
‘‘हाँ! हाँ!‘‘ संगीता ने भी माना कि देव का प्रेम सच्चा है।
‘‘संगीता! हमें तो उसके अन्दर अपना भगवान दिखाई देता है.....प्लीज समझाओ इस पागल लड़की को!‘‘ देव ने झिड़कते हुए कहा।
संगीता ने भिन्न-भिन्न प्रकार से गंगा को समझाया पर शक्की गंगा के मन में उत्पन्न शंका दूर न हुई। गंगा को कोई भी बात समझ न आयी।
इसी दौरान विश्वविद्यालयी स्कीम निकली। बीए, बीएससी, बीकाम आदि संकायों की परीक्षायें शुरू हुई। देव की इस बीएड क्लास को एक महीने की छुट्टी दे दी गई। सारे स्टूडेन्ट्स अपने-अपने घर चले गए। मैंने जाना....
इन छुट्टियों के दौरान अब देव को घर पर ही रहना पड़ता था। देव अब और भी उदास हो गया। एक तो कम अक्ल की गंगा ने देव के प्यार को गलत वाला प्यार मान लिया, दूसरी ओर देव अब अपनी बेस्ट फ्रेन्ड गायत्री से भी नहीं मिल पा रहा था। इन सारी चीजों ने देव की उदासी को और बढ़ा दिया। मैनें महसूस किया....
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