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उपन्यास >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


तभी गीता मामी आई....

‘देव! तुम्हें नाश्ते में मैगी चाहिए या आलू के परांठे?’ मामी ने पूछा।

‘आलू के परांठे’ देव ने जवाब दिया।

‘बेटा! पढ़ाई लिखाई तो ठीक है .....पर तू कभी मेरे बारे में भी सोचता है? ....मेरे बुढ़ापे की तो तुझे बिल्कुल भी फिक्र नहीं है!’ सावित्री ने मुँह बनाते हुए कहा।

‘माँ! तुम चाहती क्या हो? साफ-साफ बताओ!’ देव ने पूछा।

‘बेटा!... देख तू जो एमबीए की पढ़ाई करना चाहता था अब वो भी पूरी हो चुकी है! मैं चाहती हूँ एक अच्छी सी लड़की देख कर तेरी शादी कर दूँ! और तू यहीं मेरे पास गोशाला में ही रहे! मैं मरने से पहले अपने पोते-पोती के साथ खेलना चाहती हूँ!’ सावित्री ने इच्छा व्यक्त की।

‘नहीं! नहीं! माँ .....अब तो मैं अभी खुद एक बच्चा हूँ! ....अगर मैं शादी कर लूँगा ...तो मेरी पढ़ाई लिखाई छूट जाएगी! ...फिर मैं कोई भी किताब न पढ़ पाउँगा .....और फिर अब मुझे दिल्ली में इतनी अच्छी नौकरी भी तो मिल गयी है! ....सब कुछ कितना बढि़या चल रहा है!’ देव एक तरफ आलू के पराठे खाता गया और बोलता गया।

‘हूँ!’ सावित्री ने सुना। उसे देव का ये जवाब बिल्कुल भी पसन्द नहीं आया। सावित्री ने नाक-भौं सिकोड़ ली। मैंने देखा.....

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रात्रि का समय। अब हवेली के चारों ओर अँधेरा हो चुका था। सभी लोग घर में एकत्र हो चुके थे। दयाराम व सीताराम की बीबियों ने शाम का खाना गीता मामी के देख-रेख में बनाया था।

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