उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘हाय!‘‘ गायत्री ने कहा।
‘‘हाय! देव ने जवाब दिया।
‘‘और बताओ गायत्री फोन कैसे किया? क्या कोई खास बात?‘‘ देव ने पूछा।
‘‘हाँ! आज छोटू का जन्मदिन है आप आयेंगे? छोटू मतलब गायत्री का छोटा भाई।
‘‘पता नहीं! .....नहीं पता गायत्री!‘‘ जैसे देव दिशाहीन हो गया था।
अब उसे कुछ पता ही नहीं चलता था कि किसका जन्मदिन आ रहा है और किसका जा रहा है।
क्या करें? कहाँ जाए? वो पहले वाला जोश खरोशा, सारी ताजगी, सारा उत्साह, सारी उर्जा जैसे गंगा के प्यार में पड़कर कहीं धुल गयी। देव की हालत बिल्कुल ऐसी हो गई जैसी बीबी मरने के बाद आदमियों की हो जाती है जिसे दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं लगता। मैंने पाया....
देव ने घूमना-फिरना, पिक्चर देखना, अच्छा खाना खाना, नये कपड़े पहनना, श्रृंगार करना, सजना सँवरना सब कुछ बन्द कर दिया। सच्चे प्रेम में तो ऐसा ही होता है। अब प्यार किया है तो कीमत तो चुकानी पड़ेगी। मैंने सोचा....
देव का कहना था जब उसकी जिन्दगी में गंगा की खुशी ही नहीं तो बाकी सारी खुशियाँ फीकी हैं, बेकार हैं। इतना की नहीं देव को गंगा में अपना भगवान भी दिखता था इसलिए चोट दिल पर लगी थी।
‘‘पता नहीं!‘‘ देव फिर से बोला और ज्यादा उदास होकर।
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