उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘जितना मन करे... उतना प्यार करो उस सनकी और पागल लड़की से!‘‘ गायत्री ने हँसते हुए कहा।
गायत्री जान गयी कि ये सच वाला प्यार है। देव का कुछ नहीं हो सकता। चाहे जितना भी समझाओ, सब बेकार है।
ना ही घर में हुआ....
ना शहर में हुआ.....
प्यार तो बस हुआ...
इक नजर में हुआ....
ये तो आए नजर दिल के पार....
प्यार तो होता है प्यार.....
प्यार तो होता है प्यार.....
प्यार तो होता है प्यार.....
प्यार तो होता है प्यार.....
मैंने गाया देव की इस प्यार वाली बात पर...
‘‘अच्छा ठीक है!... हम आएगें!‘‘ देव बोला। गायत्री से बात कर उसे अब काफी अच्छा और हल्का-हल्का सा महसूस हो रहा था। मैंने देखा...
‘‘पर मेरा तो आज व्रत है!‘‘ देव को दूसरे ही पल याद आया।
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