उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘व्रत? कौन सा व्रत? और आप व्रत कबसे रहने लगे?‘‘ गायत्री को बड़ा आश्चर्य हुआ ये व्रत वाली बात जानकर।
‘‘सोलह सोमवार!‘‘ देव बड़े धीमें स्वर में बोला।
‘‘सोलह सोमवार? ये सब उस चुड़ैल के लिए है ना?‘‘ गायत्री ने देव को धमकाते हुए पूछा जिससे देव सच उगल दे।
‘‘हाँ!‘‘ देव ने स्वीकार किया।
भगवान शिव (शंकर) ने सभी मनुष्यों को यह वरदान दिया था कि अगर किसी से प्यार-व्यार का लफड़ा हो जाए तो सोलह सोमवार का व्रत रख के उसे अपने जीवन साथी के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए देव ने यह सोलह सोमवार का व्रत रखा था। देव ने जाना पहली बार। आज जाना मैंने भी....
ये सुन गायत्री को फिर से गुस्सा आ गया।
‘‘अरे देव! उस लड़की के लिए कोई पूजा पाठ करने की जरूरत नहीं!‘‘
‘‘अगर सोलह सोमवार रखना ही है तो भगवान से कोई अच्छी लड़की माँगो!... उस चुड़ैल को नहीं‘‘ गायत्री को पुराने दिन याद आये जब गंगा ने सीधी-साधी गायत्री को भला बुरा कहा था, गायत्री का घोर अपमान किया था।
‘‘ठीक है.... तो शाम को मिलते है!‘‘ देव ने बातों का रुख दूसरी ओर मोड़ दिया।
‘‘ओके! हम इंतजार करेंगें!‘‘ गायत्री बोली।
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