उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘सच में देव! तुमने गंगा से सच्चा प्यार किया है! आज तो मैं भी जान गई! तुम अपनी परीक्षा में पास हो गये’ जैसे वो कहना चाहती हो पर पता नहीं क्यों जबान साथ नहीं दे रही।
वाओ! क्या बीच का रास्ता निकाला है। गायत्री को उसका बर्थडे गिफ्ट भी मिल गया और देव की गंगा के प्रति पवित्रता, उसकी वफादरी भी नहीं टूटी!’ मैंने पाया।
देव गायत्री द्वारा ली गई इस अग्निपरीक्षा में पास हो गया था। मैंने कुल मिलाकर बड़ी माथापच्ची करके इस जटिल प्रकिया का निष्कर्ष निकाला।
‘देव! तुम्हारा प्यार पूरा हो! गंगा तुम्हारे प्रेम को पहचाने!
अब शिवजी से मैं भी तुम्हारे लिए पूजा करूँगी! मन्नत मागूँगी!’ गायत्री बोली हमेशा की तरह अपनी मधुर वाणी धीमें स्वर में बस उतनी ही शक्ति से जिससे उसकी आवाज बस देव तक पहुँच सके।
‘गायत्री! अगर तुम ऐसा करोगी तो मैं तुम्हारा एहसान मरते दम तक नहीं भूलूँगा.....’ देव ने कहा बड़ी गंभीरतापूर्वक।
‘गायत्री! आई लव यू! ...’देव ने जोर देकर ऊँचे स्वर में कहा बिना किसी लोक-लाज के, बिना किसी शर्म-हया के।
‘....पर दोस्त वाला!’ देव ने मुस्की मारते हुए स्पष्ट किया।
‘देव! आई लव यू टू! ....पर दोस्त वाला!’ गायत्री ने भी झट से जवाब दिया।
‘हाँ! हाँ! हाँ! हाँ! हाँ! ...’ दोनो हँसने लगे।
चलते समय गायत्री ने देव को केक पैक किया जो उसने ओवन में किताब देख-देख कर बनाया था।
देव ने बस पकड़ी और गोशाला पहुँचा।
‘‘माँ! मामी! .....जल्दी आओ! गायत्री ने केक दिया है!‘‘
देव की माँ सावित्री और गीता मामी ने मीठा-2 केक खाया। मैंने देखा...
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