उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
हम! यहाँ खाना खाने नहीं आये हैं... बल्कि तुमसे पूछने आयें हैं कि गंगा मेरे प्यार को कैसे पहचाने? मेरी उससे शादी कैसे हो?....और तुम हो कि खाने पे ध्यान दे रही हो!‘‘ देव तुनक कर बोला।
‘‘अगर हमारी शादी उस पागल से न हुई तो पता नहीं क्या होगा?‘‘ देव ने ऊँची आवाज में कहा।
‘‘हम हमेशा शादी से डरते थे पर गंगा को देखकर ही हमने अपना विचार बदला! तुम तो सब कुछ जानती हो!‘‘ देव बोला गंभीर होकर...
संगीता ने सुना। अब वो भी सीरियस हो गई। मैंने देखा....
‘‘देव! एक उपाय है!‘‘ जैसे संगीता को काम की बात सूझी....
‘‘वो क्या?‘‘ देव ने बड़ी बेसब्री से पूछा।
‘‘प्रियवस्तु दान!‘‘ संगीता ने कहा।
प्रियवस्तु दान एक आध्यात्मिक विधि है जिसमें याचक अपनी सबसे प्रियवस्तु का दान करता है अपनी इच्छित मनोकामना की पूर्ति हेतु। संगीता ने देव को बताया कि उसकी शादी होने के बाद कई सालों तक उसको बच्चे नहीं हुए। सास-ससुर, देवर, नन्द और पति ने उसका जीना हराम कर रखा था। फिर उसने प्रियवस्तुदान किया। ईश्वर की कृपा हुई और अन्त में उसे संतान प्राप्ति हुई।
‘‘ओ माई गाड!‘‘ देव ने सुना। वो बिल्कुल चौंक पड़ा।
‘‘तुम तो बड़ी महान हो यार! क्या-क्या जुगाड़ करके लड़का ले लिया!‘‘ देव अचंभित होकर बोला। वो ये बात जानकर बहुत खुश हो गया। मैंने देखा...
‘‘हा! हा! हा!‘‘ सगीता बड़ी जोर से हँसी.... हमेशा की तरह खिलखिलाकर। उसके सफेद दाँत चमकने लगे।
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