उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘पर संगीता! इसमें करना क्या होता है?‘‘ देव ने पूछा....
‘‘इसमें व्यक्ति को जो चीज सबसे अधिक पसन्द होती है, वो उसका दान करता है, भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और व्यक्ति की मनोकामना पूरी हो जाती है‘‘ संगीता बोली।
देव सोच में पड़ गया..
‘‘पर मुझें तो सबसे ज्यादा नानवेज खाना पसन्द है! तन्दूरी चिकन, कबाब, बिरयानी वगैरह मेरी फेवरेट डिश है!‘‘ देव ने बताया।
‘‘हाँ! तो इसे छोड़ दो! गंगा तुम्हारे प्यार को पहचान लेगी, तुमसे तुरन्त ही शादी कर लेगी!‘‘ संगीता बोली।
कुछ पलों के लिए तो देव सोच में पड़ गया। फिर.....
‘‘ ......तो ठीक है संगीता! हम करेंगें प्रियवस्तुदान!‘‘ देव ने निर्णय लिया।
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शाम का समय। देव शिवालय पहुँचा। अभी-अभी आरती शुरू ही हुई थी। पुजारी भगवान शिव ‘शिवलिंग‘ को आरती दे रहा था। ढेरों दिये शिवलिंग के चारों ओर गोलाकार रूप में जल रहे थे। सभी भक्त आँखें बन्द किये हुऐ थे। मैंने देखा...
हर एक सरसों के दिये में चार-चार बत्तियाँ थी जो जलकर पीली-पीली रोशनी बिखेर रही थीं।
सारे भक्त मुख्य कक्ष के बाहर परिसर में हाथ जोड़े खड़े थे। सभी आँखे बन्द किये हुऐ थे।
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