उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘टन! टन! टन! टन!‘‘ की ध्वनि हो रही थी। एक व्यक्ति लगातार घण्टी बजाए जा रहा था। देव भी भक्तों के समूह में जाकर खड़ा हो गया। दोनो हाथ जोड़े और आँखे बन्द कीं....।.
‘‘शिव! संगीता के बताए उपाय के अनुसार आज हम प्रियवस्तुदान करते हैं!‘‘ देव ने संकल्प लिया।
‘‘ ...हम अपना सबसे प्रिय भोजन माँसाहार दान करते है सदैव-सदैव के लिए‘‘
‘‘आज के बाद हम सिर्फ शाकाहार ग्रहण कर ही जीवित रहेंगें!‘‘ देव ने कहा शिव से।
‘‘आज के बाद हमारी वजह से कभी किसी मासूम जीव की हत्या न होगी, कभी किसी का खून ना बहेगा ...हम वचन देते हैं!‘‘ देव ने शिव को वचन दिया।
‘‘.....पर शिव! हम गंगा से बहुत प्रेम करते है! गंगा के बिना हमारा जीवन अधूरा है‘‘ देव ने शिव को बताया।
‘‘ ......इसलिए गंगा हमारे प्रेम को पहचाने और हमसे विवाह करे, यही हम माँगते हैं‘‘ देव ने वरदान माँगाय़
शिव ने सुना....
घण्टियों की टनटनाहट, नगाड़ों की धम-धम वाली आवाज समाप्त हो गयी। भगवान शंकर की शाम वाली आरती पूर्ण हो गयी। सभी भक्तों की मनोकामनाएँ शिव तक पहुँच गईं। सभी ने अपनी आँखें खोली। देव ने भी। किसी ने माँगी नौकरी! किसी ने माँगा पॅसा! और किसी ने माँगी मोटर गाड़ी पर देव ने माँगा गंगा का प्रेम! मैंने देखा....
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