उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गुड़िया
कहते हैं लोहे को लोहा काटता है!
यदि कोई साँप काँट ले, शरीर मे विष फैल जाये..... तो दूसरे साँप का विष उसे ठीक कर सकता है। अगर एक लड़की के कारण दर्द पैदा हुआ... तो दूसरी लड़की का प्यार उसे ठीक कर सकता है। यही सारी बातें देव की होशियार और तेज दिमाग माँ सावित्री के दिमाग में आयी। मैंने देखा....
जब देव की माँ सावित्री ने देखा कि ऐसे तो गंगा के चक्कर में देव या तो पागल हो जायेगा या भगवान को प्यारा हो जायेगा तब सावित्री को एक तरकीब सूझी। सावित्री ने कानपुर से विमला मौसी की लड़की ‘गुड़िया’ को गोशाला बुलाया। गुड़िया हमेशा से ही देव को पसन्द करती थी और देव से शादी करना चाहती थी। देव जब भी कानपुर जाता था... गुड़िया देव को पटाने मे लगी रहती थी। मुझे पता चला...
गुड़िया ने टिकट कटाया और पहुँच गई गोशाला।
देव की माँ सावित्री ने गुड़िया का भव्य स्वागत किया।
‘‘गुड़िया!.... तुम्हें देव से शादी करनी है? सावित्री ने पूछा बड़ी गंभीरपूर्वक नाश्ते की टेबल पर। बालकनी से सुबह का मोहक दृश्य दिखाई दे रहा था। आसमान में पक्षी उड़ रहे थे। हवा बहुत ही कोमल, सुहावनी थी। दूर सावित्री के आम के बगीचे पर इस साल आम की अच्छी फसल थी। बड़े-बड़े आम दूर से ही चमक रहे थे। मैंने नोटिस किया....
‘‘हाँ! मौसी... बिल्कुल!‘‘ गुड़िया ने अपने सुनहरे ब्रिटेनिया रस को चाय में डुबोते हुए कहा
‘‘ ... पर देव तो मुझे पसन्द ही नहीं करता है! वो तो मुझे भाव ही नहीं देता है!‘‘ गुड़िया ने बेचारा सा मुँह बनाया और फिर चाय में भीगा रस खाया। उसके चमकते हुए दाँतों को मैंने नोटिस किया....
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