उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘बेटी! और लो! और लो! तुमने तो कुछ खाया ही नहीं!‘‘ सावित्री ने कई बार के नमकीन-मीठे बिस्किट, दालमोठ व अन्य नाश्ते की ट्रे गुड़िया की ओर सरकाईं।
‘‘गुड़िया!.... मेरी बात सुन!‘‘ सावित्री ने उसे अपनी ओर बुलाया।
गुड़िया सावित्री के पास आयी।
‘‘देव के साथ एक लड़की पढ़ती है। गंगा नाम है उसका। कोई हलवाइन है शायद‘‘
‘‘उसके चक्कर मे ये लड़का बर्बाद हो गया है!‘‘ सावित्री ने गुड़िया को बताया।
‘‘ये उस लड़की से शादी कर सारी जिन्दगी चाय, समोसा बेचना चाहता है!‘’सावित्री बोली बड़ा बेचारा सा मुँह बनाते हुए।
गुड़िया ने सुना। वो बिल्कल चौंक पड़ी। आश्चर्य से उसकी आँखें फटी सी रह गयीं। मैंने देखा....
‘‘अरे मौसी! ये तो बड़ीं शर्म वाली बात है!‘‘ जैसे गुड़िया को सदमा सा लगा। जमीन पर उसके पैर ठहर से गयें। धड़कन रूक सी गई। मैंने सुना....
‘‘हाय मौसी! देव तो तुम्हारी नाक ही कटा देगा! एक समोसे वाली पे फिसल गया ये! मैनें तो कभी सपनें में भी नहीं सोचा था‘‘ गुड़िया ने खेद जताते हुए कहा।
‘‘कहीं उस समोसे वाली ने देव को अपना समोसा तो नहीं खिला दिया?‘‘ जैसे गुड़िया के मन में शंका हुई।
गुडि़यां बहुत गोरी थी, बिल्कुल दूध की तरह, वही गंगा साँवली। जहाँ गंगा पढ़ाई-लिखाई में बहुत कमजोर थी, वही गुडि़यां कानपुर के मेडिकल कालेज से नर्स बनने वाला कोर्स कर रही थी।
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