उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
शुरू के एक हफ्ते देव ने गुड़िया को कुछ नहीं कहा मारे शर्म-ओ-हया के।
अब गुड़िया का मनोबल थोड़ा और बढ़ गया। अब गुड़िया देव के कपड़े भी धोने लगी। ‘‘अरे वाह! इसे कहतें है सच्ची पतिव्रता भारतीय नारी। मैंने गुड़िया को देखकर महसूस किया....
....फिर भी देव ने कुछ नहीं कहा। देव बहुत शर्मीला जो था। अब गुड़िया खूब नाचने लगी। फेशियल, ब्लीच तरह-तरह के मेकप करने लगी। रोजाना बालों में शैम्पू करे फिर सफेद खुशबूदार बेले के फूलों से माला बनाकर लगाए। इस रूप में गुड़िया गजब की सुन्दर लगती थी। मैंने गौर किया....
देव को बड़ी शर्म आये गुड़िया के इस व्यवहार पर। गुड़िया को देख-देख कर सावित्री मन ही मन खुश होने लगी कि जब घर में जवान लड़की चौबीस घण्टे ऐसे-ऐसे रूप दिखाऐगी तो देव आखिर कब तक उस चाय वाली को याद रखेगा। ये सोच सावित्री मन ही मन खुश रहने लगी। मैंने पाया....
सावित्री के इस घर में देव, सावित्री, गीता मामी, मामा और उनके तीन बच्चे रात का डिनर साथ में बैठ कर करते थे। पर अब ये शेड्यूल चेंज हो गया। अब गुड़िया छप्पन तरह के पकवान बनाती। उसे थाली में सजाकर देव के कमरे में ले जाती। कुछ दिन तक तो ऐसे ही चला। देव जो बहुत सीधा-साधा था, बहुत शर्मीला था। देव ने आज तक सिर्फ गंगा से ही प्यार-व्यार वाली बात की थी। देव को बड़ी शर्म महसूस हो।
गुड़िया हर रात खाना बनाती। उसे थाली में परोसती। फिर अपने सारे काले-काले, लम्बे-लम्बे बाल. (जहाँ गुड़िया के बाल बड़े काले-काले थे वहीं गंगा के बाल तेजी से झर रहे थे और गंगा कुछ ही दिनों में गंजी होने वाली थी) को खोलती... फिर बिना दुपट्टे के ही खाना लेकर देव के पीछे वाले कमरे में चली जाती। टेबल पर खाना रखती, ग्लास में पानी डालती। देव जब खाना खाने लगता, तो गुड़िया देव के बेड पर लेट जाती, जिससे उसके वक्षस्थल किसी पेड़ पर लगे पके आम की तरह देव को साफ-साफ नजर आते।
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