उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
पूरी चिट्ठी
देव का वजन तेजी से कम होने लगा। आँखों के नीचे बड़े-बड़े काले रंग के गढ्ढे पड़ गये। अब देव की एक-एक हड्डी दिखने लगी। सारा अस्थिपंजर दिखने लगा। देव की इस मरणासन्न हालत को देख शिव ने शीघ्र कृपा की।
शिव ने अपना सीधा हाथ देव की ओर बढ़ाया। जिसमें से एक अद्भुत, अद्वितीय, दूधिया प्रकाश उत्पन्न हुआ जो अलौकिक, अप्रतिम और अप्रत्याशित था। जिसका वर्णन करना अत्यन्त कठिन है। उस प्रकाश से अनगिनत चाँदी सी सफेद किरणें... जो अनेक जुगनुओं की भाँति जगमग जगमग कर रही थीं, प्रकाश पुन्जो से रोशन थी.... निकली..... जो देव पर पड़ी। जैसे मरणासन्न देव में जान सी आ गई। मुझे विजन्स आने लगे....
शिव ने देव को अपनी उर्जा से भर दिया.. परिपूर्ण कर दिया।
‘‘ऐसा जादू, ऐसा मैजिक, ऐसा चमत्कार सिर्फ देवों के देव, त्रिकालदर्शी महादेव भगवान शिव ही कर सकते हैं!‘‘ मैंने भी शिव की शक्ति को जाना और पहचाना...
अब देव के दुखों के दिन समाप्त हो गये हैं। अब उसके जीवन में शुभता, समृद्वि और खुशहाली का संचार होगा। मुझे अनुभूति होने लगी, महसूस होने लगा....
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गोशाला।
देव का घर। भोर होते ही....
‘‘चीं! चीं! चीं! चीं! ... ... ....‘‘
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