उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
गौरैया का एक जोड़ा आश्चर्यजनक रूप से प्रकट हुआ। उसमें एक नर था दूसरी मादा। अपनी संरचना के अनुसार नर गौरैया बड़ी थी और अधिक वजनी जबकि मादा संरचना में छोटी और हल्की। दोनों पक्षी रहस्यमय रूप से देव के बड़े से कमरे की खिड़कियों पर आ बैठे और जोर-जोर से अपनी चोंच खिड़की के काँच पर मारने लगे।
‘खट्! खट्!.... की आवाज होने लगी। पर देव तो गंगा के प्रेम में मरणासन्न था। वह गौरैयों द्वारा की गई खटखटाहट नहीं सुन पा रहा था प्रेम वियोग के कारण।
पर दोनों पक्षियों का जोड़ा जैसे ठानकर आया था कि देव को बचाना है। सावित्री की आँखों का तारा देव मरना नहीं चाहिए। मैंने जान लिया....
दोनों पक्षी अनवरत काँच की खिड़कियों पर जोर-जोर से लगातार चोट करते गये। अन्तवोगत्वा देव ने शोर सुना। परदे हटाये और अपने कमरे की वो खिड़की खोली। अब तक सवेरा हो चुका था। सूर्य के प्रकाश ने पूर्व दिशा से सीधे देव के कमरे में प्रवेश किया। साथ ही एक ठण्डे हवा के झोके ने भी देव को हर प्रकार से छू लिया।
‘अरे! ये पन्छी कहाँ चले गये.....’ देव ने देखा तो दोनो गौरैया अदृश्य हो गये थे।
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रानीगंज।
गंगा का घर। सुबह का समय। बिल्कुल यही क्षण....
गंगा की माँ ने एक कबाड़ी वाले की आवाज सुनी, जो बार-बार कबाड़ बेचने की आवाज लगा रहा था।
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