उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
इक्कीस साल बाद
गंगा और देव का पुत्र ‘सत्यम्’ अब बी.ए. की स्नातक परीक्षा पास कर चुका था। अब वो इक्कीस साल का नौजवान युवक हो गया था। गंगा ने जिद पकड़ ली की सत्यम् को उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली पढ़ने को भेजा जाए।
‘गंगा! मुझे सत्यम् को दिल्ली भेजने में कोई दिक्कत नहीं है... पर उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, दिल्ली से लौटने के बाद... हो सकता है कि सत्यम् दुकान चलाने के काम को छोटा माने, उसे तुच्छ माने.. ये भी हो सकता है कि सत्यम् हम लोगों के मरने के बाद दुकान बन्द कर दे!’ देव ने विचार करते हुए कहा।
‘तब?....’ गंगा भी सोच में पड़ गयी।
‘गंगा! अगर दुकान बन्द हो जाएगी तो एक बार फिर से तुम्हारे बाबू का नाम समाप्त हो जाएगा! मैंने तुम्हारे बाबू को जो वचन दिया था कि कभी अपने जीते जी दुकान पर ताला नहीं लगने दूँगा वो वचन टूट जाएगा!!’ देव विचार करते हुए बोला...।
‘ तब.... देव??’ गंगा ने पूछा।
‘गंगा! वैसे भी सत्यम् ने ग्रेजुऐशन कर ही ली है!.... तुम अगर कहो तो एक अच्छी सी लड़की देखकर सत्यम् का विवाह कर दिया जाए जिससे वो दुकान सम्भाले और अपनी वाइफ के कारण उसका मन भी लगा रहेगा!....’
‘ हाँ! देव! इ ठीक रही!!’ गंगा ने सहमति जताई।
सत्यम् के लिए एक उपयुक्त कन्या की खोज शुरू की गई। जहाँ-जहाँ भी गंगा और देव जाते थे वहाँ-वहाँ पर कन्याएँ थीं तो ठीक-ठाक, सुन्दर भी थीं पर देव सत्यम् के लिए बिल्कुल उपयुक्त कन्या चाहता था।
बहुत खोज करने के बाद देव को सत्यम् के लिए एक उपयुक्त कन्या मिली। वह सत्यम् की भाँति अत्यन्त रूपवान तो थी ही, गुणवान भी बहुत थी। वो देव की भाँति अनेक गीत गा सकती थी.. अनेक प्रकार के नृत्य कर सकती थी। उसे विभिन्न प्रकार की मिठाईयाँ बनाने का हुनर अपने परिवार से विरासत में मिला था। साथ ही वह चाकलेट वाली टोडा बर्फी भी बना लेती थी जो देव को बहुत पसन्द थी और जिसे दिल्ली वाले बड़े चाव से खाते हैं। उस कन्या ने समस्त परिवार के सामने वो टोडा वाली बर्फी बनाकर दिखाई। देव सहित सभी लोगों ने उस कन्या को सत्यम् की वधू के रूप में चुन लिया। उस कन्या का नाम था ज्ञानमती। जैसा नाम बिल्कुल वैसा काम...
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