उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
आठ साल बाद
देव की माँ सावित्री और पिता कुछ साल पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे। देव को बहुत दुख हुआ था इन दो बड़ी घटनाओं से।
अब गंगा के बाबू गंगासागर हलवाई का अन्त समय आया था। अब वह बहुत बीमार हो गया था। सभी जान गये थे कि अब वो नहीं बचेंगें...
‘बाबू! आज तक की अपनी सारी गल्तियों, सारे किये गये पापों के लिए भगवान से माँफी माँग लीजिए!!’ अपने समझदार और धर्मपरायण देव ने मृत्यु शैय्या पर लेटे हुए अपने ससुर गंगासागर हलवाई के कान में धीरे स्वर से कहा।
गंगा और रुकमणि दोनों गंगासागर हलवाई के सिरहाने बैठ गयीं। बड़ा भयंकर विलाप करने लगीं।
अपनी सारी गल्तियों की माफी माँगने के बाद देव ने उनके मुँह में गंगाजल डाला। उसके बाद गंगासागर हलवाई ने अपनी आँखें बन्द, हमेशा-हमेशा के लिए बन्द कर लीं।
घर में बहुत रोना-पिटना मच गया। कुछ ही घन्टों में सारा रानीगंज ये दुखभरी खबर पाकर इकट्ठा हो गया।
‘हाय! ददई!! हाय! ददई!! गंगईया!! तोहरे बाबूजी हमका छोड़ के चले गये रे!!!!.... अब हमार का होई?’ गंगा की माँ रुकमणि बड़े की कर्कश, दिलदहला देने वाले स्वर में बड़ी जोर से चिल्लायी जैसे बिल्कुल पागल हो गयी हो। वो फफक कर रोने लगी....
‘अम्मा! जौन आवा है ओका तो जाए के पड़ी!! यही तो नियम है इ दुनिया के! हमका-तूका सभी का मरेक है एक दिन!!’ देव बहुत तेजी से चिल्लाया ऊँचें स्वर में और उसने दौड़ कर अपने हाथों के बल से रुकमणि को खींच लिया एक ओर और उसे किसी प्रकार समझाया।
फिर भी रुकमणि लगातार रोती ही रही और जब अर्थी पर गंगा के बाबू के मृत शरीर को रखा जाने लगा, अर्थी पर नारियल, फल वगैरह लगाया जाने लगा तो वह विरोध करने लगी। देव और गंगा ने बड़ी मुश्किल से उसे नियंत्रित किया।
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