उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘सर! मुझे तो सारे के सारे ऑप्शन सही लग रहे हैं!‘‘ देव बोला सोचते हुए।
‘‘फिर भी तुम्हें एक को चुनना है!‘‘ टीचर ने विवशता बताई।
‘‘विशेष सहायता देकर‘‘ देव ने कुछ देर सोचकर जवाब दिया।
‘‘गलत जवाब!‘‘ वो खुश हो गया जैसे बस वो मौका ही ढूँढ रहा था स्टूडेन्ट्स को लेक्चर पिलाने का मौका मिले।
‘‘देखो जरा! कोई भी बीएड करने चला आता है!‘‘ उसने हेय दृष्टि से कहा, सारे स्टूडेन्ट्स को एक साथ देखते हुए, जैसे सभी के सभी महामूर्ख और बिल्कुल गधोमड़ हों।
देव को ये सुन अच्छा न लगा। जैसे बुरा लगा। पर क्लास में पहला दिन। कुछ बोल भी नहीं सकते। मजबूरी वाली बात है। मैंने सोचा....
‘‘जब हमारे जमाने में लोग बीएड करते आते थे तो केवल होशियार बच्चों का ही सेलेक्श्ान होता था! पर अब देखो! ये उत्तर प्रदेश की सरकार हर किसी को भी इन्ट्रैंस इक्जाम में पास कर देती है? जो लोग इक्जाम में सिर्फ एक नम्बर पाते हैं उनको भी दाखिला मिल जाता है! क्या होगा इस देश का भविष्य?’ उसने अफसोस जताते हुए कहा।
टीचर का तात्पर्य था कि जो स्टूडेन्ट्स क्लास में मौजूद हैं वो बीएड करने की योग्यता को पूरी नहीं करते। अब सारे बच्चों ने जान लिया। पर सभी चुप रहे।
‘‘सही जवाब है-
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